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________________ २६५ कि शकुन भावी घटनाओं के सूचक । यही कारण है कि हरिभद्र का प्राकृत तथा साहित्य भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं की सूचना देने वाले शकुनों से व्याप्त है । हरिभद्र ने इन शकुनों के द्वारा कथा को अभीष्ट दिशा में मोड़ने तथा चमत्कार उत्पन्न करने के लिए इस कथानक रूढ़ि का उपयोग किया है । जब अमात्य पुत्र सेनकुमार से वार्तालाप कर रहा था और वह यह निवेदन कर रहा था कि महाराज के दीक्षा धारण करने के उपरान्त प्रजा अपने को अनाथ समझ रही है । अतः आपको चलकर राज्य का भार संभालना चाहिए। सेनकुमार श्रमात्य पुत्र को सांत्वना देता हुआ कहता है कि विषेण के रहते हुए प्रजा क्यों अपने को अनाथ समझती है ? प्रजा को विषेणकुमार पर विश्वास करना चाहिए । इसी समय प्रतीहार छींका और कुमार का वामलोचन स्फुरित होने लगा । इस अशुभ शकुन का विचार कर कुमार को बड़ी चिन्ता हुई और उसने राज्य का समाचार लाने के लिए चतुर दूत नियुक्त किये। (४) भविष्यवाणी और आकाशवाणी मनुष्य अपने भविष्य को जानने के लिए उत्सुक रहता है । वह अपनी भावी घटना और कार्यों को वर्त्तमान में ही जान लेना चाहता । श्रतः कलाकार अपनी कथाओं में चमत्कार उत्पन्न करने के लिए भविष्यवाणियों का कथानक रूढ़ि के रूप में उपयोग करता है । हरिभद्र ने नायक-नायिका को रहस्यमयी घटनाओं की सूचना भविष्यवाणी द्वारा दिलवायी है । जब कोई उलझनपूर्ण परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है और नायक या अन्य पात्र ठीक निष्कर्ष नहीं निकाल पाता है, उस समय भविष्यवाणी कठिनाई को सुलझा देती है । हरिभद्र की प्राकृत कथाओं में आकाशवाणी का उल्लेख भी मिलता हैं । सुभद्रा के शील की परीक्षा के समय चम्पा में देव ने नगर द्वारों के खोलने के लिए श्राकाशवाणी का प्रयोग किया हैं । इस प्रकार इन्होंने भविष्यवाणी और आकाशवाणी द्वारा नायक की समस्या को तो सुलझाया ही है, साथ ही कथानक को गतिशील और क्रिया व्यापार को अग्रगामी बनाया है । अमरसेन से जब विषेण कुमार ने राज्य प्राप्त कर लिया तो वह प्रजा पर मनमानी करने लगा। उसने मंत्रिमंडल का अपमान या तिरस्कार किया। उसके व्यवहार से प्रजा तथा श्रमात्य वर्ग संत्रस्त था। इसी समय नैमित्तिकों ने भविष्यवाणी की कि विषेण राज्य को ग्रहण करेगा, पर उससे यह राज्य चला जायगा, किन्तु सेनकुमार खोये हुए राज्यको पुनः प्राप्त करेगा और अपने कुल के यश को निर्मल बनाये रखेगा। (५) अमानवीय शक्तियों से सम्बद्ध कथानक रूढ़ियां -- मनुष्य की सबसे बलवती प्रवृत्ति ग्रात्मसंरक्षण की है, जिसके कारण वह नाना प्रकार भौतिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक प्रयत्न करता चलता है । ईश्वर, देवता और भूतप्रेत की कल्पना भी उसकी इस प्रवृत्ति के परिणामस्वरूप है । श्रादिम काल में मनुष्य सूर्य, चन्द्र, अग्नि और प्रांधी आदि की शक्तियों में विश्वास करता था तथा इन्हें देवता समझ कर इनकी पूजा-उपासना भी करता था । देवी-देवताओं के समान ही भूत-प्रेत में विश्वास करना भी मानव समाज की आदिम वस्तु है । संसार के समस्त १- भग० सं० स०, पृ० ६९४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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