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________________ २५७ (२) परिवार रक्त संबंध के आधार पर संघटित होता है। इसमें अनेक सदस्य सम्मिलित होते हैं। (३) परिवार के सभी सदस्य साथ-साथ रहते, खाते-पीते और सोते-उठते हैं। (४) परिवार के पास कुछ सम्पत्ति होती है, जिसका उपयोग परिवार का ___ मुखिया सभी सदस्यों के परामर्श से करता है। (५) परिवार में सुख-सुविधा और व्यवस्था के लिये मुखिया का निर्वाचन किया जाता है। (६) मुखिया परिवार के समस्त सदस्यों को सुख-सुविधा का पूरा ध्यान रखता है। परिवार के सभी सदस्य अपना-अपना कार्य सुन्दर ढंग से संचालित करते हैं। (७) परिवार का गठन रक्त सम्बन्ध के आधार पर रहता है, अतः कोई भी सरलतापूर्वक इसके सम्बन्ध को तोड़ नहीं सकता है। प्रेमभाव का परिवार में रहना अनिवार्य है। (८) परिवार के उत्थान और शान्तिमय जीवन के लिए सम्बन्धित प्रत्येक व्यक्ति आवश्यकता पड़ने पर त्याग या बलिदान का आदर्श उपस्थित कर देता (8) परिवार के आर्थिक और सांस्कृतिक कार्यों का दायित्व सभी सदस्यों पर समान रूप से रहता है। हरिभद्र की प्राकृत कथाओं में राजपरिवार श्रेष्ठिपरिवार, चाण्डालपरिवार, ब्राह्मणपरिवार, किसानपरिवार आदि का सर्वांगीण चित्रण उपलब्ध होता है । सरल और संयुक्त --ज्वाइन्ट परिवार के चित्र भी हरिभद्र की कथाओं में मिल जाते हैं। अधिकांश पितप्रधान परिवारों का उल्लेख ही हरिभद्र की कथाओं में हुआ है। (१९) मिलन बाधाएं-- नायक-नायिकानों के प्रेम मिलन में आने वाली विभिन्न बाधाओं का उल्लेख भी हरिभद्र ने बड़े विस्तार के साथ किया है। विलासवती और सनत्कुमार के प्रेम मिलन की कथा इन बाधाओं का सम्पूर्ण चित्र उपस्थित करती हैं। दोनों के प्रथम साक्षात्कार के उपरान्त ही सनत्कुमार को ताम्रलिपि से भाग जाना पड़ता है। फलतः नायिका असमंजश में पड़ जाती है। उसके मन में अपूर्व द्वन्द्व होता है, पर वह कोई निश्चय नहीं कर पाती। एक दिन वह राजभवन को विलखता छोड़ अपने प्रेमी की तलाश में निकल पड़ती है। जहाज के फट जाने से नायिका किसी काष्ठ फलक के सहारे समुद्र तट पर एक तापस आश्रम में पहंच जाती है । संयोगवश नायक भी वहीं पहुंच जाता है, दोनों का यहां पुनः साक्षात्कार होता है । कुछ दिनों तक साथ रहने के उपरान्त वे स्वदेश की ओर गमन करने की इच्छा करते हैं। भिन्न पोतव्वज देखकर महाकटाहवासी सानुदेव सार्थवाह, जो कि मल्यदेश को जा रहा था, लघु नौका भेज देता है। सनत्कुमार रात्रि के समय शारीरिक आवश्यकता को पूत्ति के लिए उठता है। मन में पाप आ जाने से सार्थवाहपुत्र उस स्त्री रत्न को ले लेने की कामना से सनत्कुमार को जहाज से नीचे गिरा देता है। संयोगवश सनत्कुमार को काष्ठफलक मिल जाता है और पांच रात्रि तक बहने के उपरान्त मलयकुल पहुंचता है। इधर सार्थवाह-पुत्र का वह जहाज भी जलमग्न हो जाता है। विलासवती भी किसी प्रकार काष्ठफलक प्राप्त कर उसी मलयतट पर पा जाती है, जिसपर सनत्कुमार स्थित है। एकबार यहां पुनः नायक-नायिका का मिलन होता है। १७---२२ एडु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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