SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 281
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४८ तुम यहीं रह कर यथाशक्ति धर्मसाधन करो" । वे उसके धर्मसाधन के लिये प्रचुर धन व्यय कर जिनालय का निर्माण कराते हैं, उसमें सुन्दर मनोज्ञ प्रतिमाएँ स्थापित कराते हैं । पूजन के निमित्त पुष्प, चन्दन, नैवेद्य, दीप, धूप आदि का प्रबन्ध करते हैं। बहन के प्रति इसे हम कर्त्तव्य की भावना नहीं कह सकते हैं, बल्कि यह विशुद्ध प्रेम है । बहन भी अपने भाइयों से वैसा ही विशुद्ध प्रेम रखती है । जब धनपति अपनी पत्नी धनश्री को उसके चरित्र पर श्राशंका कर घर से निकाल देता है, तो बहन गुणश्री ही उस दम्पत्ति के बीच में पड़ कर सन्धि कराती है । बहन को भी इस बात की चिन्ता है कि घर की एकता और प्रेमभाव प्रक्षुण्ण रहना चाहिये। जहां प्रेम हैं, वहीं साम्राज्य और सुख है । पति-पत्नी के मधुर प्रेम के तो अनेक उदाहरण आये हैं । विलासant' का सनत्कुमार के साथ प्रेम आदर्श दाम्पत्य प्रेम है । ताम्रलिप्त से सनत्कुमार के चले जाने पर वह घर से निकल जाती है और अनेक प्रकार के कष्टों को सहन करती हुई अपने श्राराध्य को प्राप्त करती है । यह प्रेम एकांगी नहीं है, बल्कि दोनों ही प्रोर है । सनत्कुमार भी विलासवती से उतना ही अधिक प्रेम करता है । समुद्रतट पर विद्याधर द्वारा विलासवती का अपहरण किये जाने पर वह श्रात्महत्या करने को तैयार हो जाता है । यहां मात्र वासना नहीं है, किन्तु प्रेम का उदात्त रूप है । रानी शान्तिमती और सेनकुमार का चरित्र भी आदर्श गार्हस्थिक जीवन के निर्माण में सहायक है । इन दोनों के मधुर और स्थायी प्रेम का यह उदाहरण समाज के लिये अत्यन्त अनुकरणीय है । सेनकुमार जब शवरों से युद्ध करने लगता है, तो शान्तिमती उसे खोजने चल देती है, पति के अभाव में उसे सारा संसार काटने दौड़ता है । जब वह पति को प्राप्त करने में अपने को असमर्थ पाती है, तो वृक्ष से झूल कर अपना श्रन्त कर देना चाहती है । संयोगवश उसके गले से लताओं का बन्धन छूट जाता है और वह गिरकर मूर्छित हो जाती है । free के तपस्वी प्राश्रम में रहने वाले ऋषिकुमारों में से कोई कुमार वहां श्रा जाता है और उस अनिन्द्य सुन्दरी को देख आश्चर्य - चकित हो जाता है । श्राश्रम में ले जाकर उसे कुलपति के संरक्षण में रख देता है । इधर शान्तिमती के प्रभाव में कुमार की बुरी अवस्था हो रही है । पल्लीपति शान्तिमती की तलाश करने के लिये चारों ओर अपने व्यक्तियों को भेजता है । मती के प्रेम में अत्यन्त श्राकुल हैं । कुमार शान्ति दाम्पत्य प्रेम का एक और उदात्तरूप रत्नवती और कुमार गुणचन्द्र के शील में उपलब्ध होता है । कुमार गुणचन्द्र रत्नवती के चित्र को देखकर तथा रत्नवती कुमार क चित्र को देखकर परस्पर में प्रेम विभोर हो जाते हैं । यही प्रेम विवाह के रूप में पल्लवित होता है । विवाह के पश्चात् जब कुमार गुणचन्द्र विग्रह के साथ युद्ध करने चला जाता है और बानमन्तर युद्ध में कुमार के मारे जाने का मिथ्या प्रवाद अयोध्या में प्राकर प्रचारित कर देता है, जिससे रत्नवती घबड़ा जाती है और पांच दिनों तक कुमार का कुशल समाचार न मिलने पर आत्महत्या करने की प्रतिज्ञा करती है । कुमार की कुशलता के लिये शान्तिकर्म और अनुष्ठान आदि भी करती है । प्रेम का यह निश्छल रूप शील का पुटपाक है । माता और पुत्र के वात्सल्य का संकेत दशवेकालिक की टीका में प्रायी हुई लघुकथा में मिलता है । वास्तव में पुत्र स्नेह अद्भुत है । मां अपने पुत्र को प्राणों से भी १ - - भग० सं०० पृ० ७६ । २- वही, पृ० ६६२ । ३-समराइच्चकहा- अष्टमभवकथा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy