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________________ , प्राचार्य -- "जिस प्रकार कोई महापराधी राजा की कड़ी श्राज्ञा से बांधा गया, और घोर अन्धकार वाले कारागृह में बन्द किया गया, परतन्त्र होने के कारण अपने प्रिय व्यक्तियों को भी नहीं देख सकता है, फिर वह किसी का अनुशासन कैसे कर सकता हूँ ? इसी प्रकार प्रमाद के कारण महापराध करने वाले तीव्रतर कर्मपरिणामों से गृहीत, प्रचण्ड नारकियों के द्वारा वज्रमयी श्रृंखलाओं से निबद्ध शरीर वाले, तीव्र अन्धकार युक्त नरक के निवासी कर्मपरतन्त्र वहां से किस प्रकार निकल सकते हैं दूसरी बात यह भी है कि पर्याय बदलने से पिछली पर्याय के सम्बन्धियों के साथ कोई विशेष सम्बन्ध जीव का नहीं रहता है ' १ ५" 1 इस प्रकार यह कथोपकथन बहुत लम्बा हैं और कई पृष्ठों तक चलता है । यहां आचार्य विजय सिंह और free ये दोनों ही अपने-अपने वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं । विजय सिंह प्रास्तिकता उत्पन्न कर समाज में सदाचार का प्रचार करते हैं और पिंगक नास्तिकता सिद्ध कर स्वच्छन्दवाद का । दोनों ही अपने-अपने वर्ग के प्रतिनिधि के रूप में वार्तालाप श्रारम्भ करते हैं । लगता यह है कि हरिभद्र के समय में भी श्रादर्श सदाचारवाद और स्वच्छन्दतावाद का संघर्ष वर्तमान था । श्रतः उन्होंने इस समस्या को प्राचार्य विजय सिंह और पिंगक के संवाद में उपस्थित किया है तथा अन्त में विजय सिंह की विजय दिखलाकर सदाचारवाद की प्रतिष्ठा की हैं । दर्शन का पुट रहने से संवाद का कथात्व प्रायः लुप्त हैं । समराइच्चकहा के अन्य सभी श्रृंखलाबद्ध कथोपकथन संभाषण हैं, जो पात्रों की मनोवृत्तियों का परिचय प्रकट करते हैं । इन लम्बे प्रभिभाषणों में कथानों का पुट है, जिससे कथोपकथन रोचक होने के साथ भाराच्छन्न बन गये हैं । " एकस्तम्भ कथा में प्रभयकुमार का नागरिकों के बीच एक लम्बा भाषण हैं । इस भाषण में उन्होंने एक कथा उपस्थित व्यक्तियों को सुनायी हैं तथा कथा को पात्रों पर उनकी सम्मति लेकर चोर का निश्चय किया है । इस कथा में बीच-बीच में मनोरंजक और स्वाभाविक कथोपकथन भी श्राये I २१८ " उन्मुक्त संवादों को दो श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है --गोष्ठी संवाद और श्रापसी वार्ता 1 गोष्ठी संवाद दो से अधिक मित्रों या अन्य सम्बन्धियों के बीच घटित होते हैं । हरिभद्र की प्राकृत कथाओंों में गोष्ठी संवाद मूलतः तीन प्रकार के प्राये हैं- (१) मित्रगोष्ठी, (२) धूर्त गोष्ठी, और (३) राजसभा संवाद । मित्रगोष्ठी संवाद मित्रों और सखियों के बीच सम्पन्न हुए हैं । निम्नांकित मित्रगोष्ठी संवाद उल्लेख्य हैं --- (१) प्रियंकरा, मदनलेखा प्रभृति सखियों और कुसुमावली का संवाद' (२) वसुभूति श्रादि मित्रों और सनत्कुमार का संवाद । १ --सं. पृ०३ । २०८ । २०-३० हा० गा० ६२, पृ०६१ । ३- सं० १०, पृ० ११ २०८२ । ४ - वही पृ० ३६० । Jain Education International For Private & Personal Use Only ! www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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