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________________ पंचम प्रकरण हरिभद्र की प्राकृत कथाओं के संवाद तत्त्व और शील स्थापत्य १ | संवाद या कथोपकथन कथाओं में संवादात्मकता का होना कथा-सौष्ठव की दृष्टि से नितान्त आवश्यक है । जिस प्रकार व्यावहारिक जीवन में मनुष्य की बातचीत करने की प्रणाली उसके चरित्र का मापदण्ड बन जाती हैं, उसी प्रकार कथा के पात्रों के कथोपकथन का भी प्रभाव उनके चरित्र एवं अन्य क्रियाकलापों पर पड़ता है । मनुष्य की बाह्य प्राकृति एवं साज-सज्जा केवल इतना हो बतला सकती है कि अमुक व्यक्ति गरीब या अमीर हैं, किन्तु उसके मनोभावों की जानकारी उसके वार्त्तालाप से ही होती हैं । किसी व्यक्ति को कर्मठता, अकर्मण्यता, उदारता, त्याग, साधुता, दुष्टता, दया, ममता, प्रेम आदि वृत्तियों और भावनाओं की यथार्थ जानकारी संभाषण के द्वारा ही संभव है । २१३ कथाओं में अनेक वर्ग और जातियों के पात्रों का समावेश रहता है और उन पात्रों के कथोपकथन में उनकी वर्गगत और जातिगत विशेषताओं को दिखलाने की ओर जबतक कथाकार का ध्यान नहीं रहेगा, तबतक उसके द्वारा सृजन किये गये पात्रों में जीवन का संचार नहीं होगा । प्रत्येक पात्र को अपनी सीमाओं में ही सोचना और बोलना चाहिए । कथा में कथोपकथन एवं संभाषणों का इसीलिए महत्त्व है कि कथा की घटनाएं पात्रों के कथोपकथन में से ही विकसित होती हैं । कथातत्त्व के मर्मज्ञ आचार्य हरिभद्र सूरि की प्राकृत कथाओंों में समाज के प्रत्येक क्षेत्र के पात्रों के वार्तालाप, संभाषण एवं स्वगत कथन विद्यमान 1 पात्रों की मनोवृत्तियों का प्रदर्शन कथोपकथन के एक-एक शब्द में दिखलायी पड़ता है । हरिभद्र द्वारा निर्मित पात्रों के कथोपकथन भावों, प्रवृत्तियों, मनोवेगों तथा घटनाओं के प्रति उनको प्रतिक्रिया दिखलाने के साथ-साथ कार्यप्रवाह को भी श्रागे बढ़ाते हैं । पात्रों की वैयक्तिकता की रक्षा के साथ प्रभावान्विति को बनाये रखने में भी इनके पात्रों के संवाद सहायक हैं । कथोपकथन का वर्गीकरण हरिभद्र की प्राकृत कथायों के पात्रों के कथोपकथन को मूलतः दो श्रेणियों में विभक्त का सकता हूं-- ( १ ) श्रृंखलाबद्ध कथोपकथन और (२) उन्मुक्त कथोपकथन । श्रृंखलाबद्ध कथोपकथन से हमारा तात्पर्य उस प्रकार के कथोपकथनों से हैं, जो संभाषण के रूप में धाराप्रवाह कुछ काल तक चलते रहते हैं । इस कोटि के संभाषण समराइच्चकहा में केवली, जिन या अन्य किसी प्राचार्य के उपदेश के रूप में श्राते हैं । शालिक की हरिभद्र वृत्ति में "एकस्तम्भ कथा" में अभयकुमार भी एक सभा में लम्बा संभाषण करता है । उक्त प्रकार के संभाषणों का विश्लेषण किया जाता है । ये निम्नांकित हैं :-- (१) गुणसेन और विजयसेन (२) सिंह कुमार और धर्मघोष १ - - भग० सं० स०, पृ० ४६––६८ । २-- भग० सं० स०, पृ० १०२, १४०-१४१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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