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________________ १८६ प्रभाव प्रधान कथाओं का लक्ष्य प्रभाव की सृष्टि करना है। इन कथाओं में घटना, चरित्र, वातावरण और परिस्थिति आदि का कोई विशेष महत्व नहीं है । जिस प्रकार संगीत में गाने का महत्व नहीं रहता है, महत्व उससे पड़ने वाले प्रभाव का होता है, उसी प्रकार इस कोटि की कथाओं में प्रभाव का महत्व होता है । इस वर्ग में हरिभद्र की निम्नांकित कथाएं आती हैं (१) ब्रहमदत्त ( उप०गा० ६, पृ० ४) । ( २ ) पुण्यकृत्य की प्राप्ति (उप०गा० ७५, पृ० ५५ ) । (३) प्रभाकर चित्रकार ( उप०गा० ३६२ -- ३६६, पृ० २१७ ) । (४) पुरुषार्थ या देव ( उप०गा० ३५३ - - ३५६)। (५) कामासक्ति ( उप०गा० १४९, पृ० १३२ ) । (६) माष तुष ( उप०गा० १९३, पृ० १५२) । "ब्रहमदत्त" शीर्षक कथा में चुलणी दीर्घराज से प्रेम करती है, कुमार ब्रहमदत्त के मारने का षड्यंत्र रचा जाता है, किंतु वरधनु नामक मंत्री कुमार की रक्षा करता है । समर्थ होने पर ब्रह्मदत्त अपने राज्य और परिवार तथा षट्खंड पृथ्वी को जीतकर चक्रवर्ती बन जाता है । एक दिन एक ब्राह्मण घूमता हुआ चक्रवर्ती के यहां आता है । चक्रवर्ती उससे प्रसन्न होकर वर मांगने को कहते हैं । ब्राहमण अपनी गृहिणी से पूछकर अगले दिन वर मांगने की प्रार्थना करता है । अगले दिन वह अपने घर से सलाह कर आता है और चक्रवर्ती से निवेदन करता है कि मुझे आपके राज्य में प्रतिदिन एक-एक घर भोजन और एक-एक दीनार दक्षिणा में दिलाने की व्यवस्था करें। चक्रवर्ती के घर से भोजन कराना और दक्षिणा में दीनार मिलना आरम्भ हो जाता है। अब वह क्रमशः षट्खंड के बीच ९६ करोड़ गांवों के प्रत्येक घर में भोजन करना आरम्भ करता है । उस ब्राहमण को यह आशा लगी है कि छहों खंडों में भोजन करने के पश्चात् चक्रवर्ती के यहां से दिव्य भोजन को प्राप्त करूं । पर आयु परिमित होने से यह संभव नहीं । इसी प्रकार चौरासी लाख योनियों में परिभ्रमण करने के पश्चात् मनुष्य भव का प्राप्त करना संभव नहीं । इस प्रकार यह कथा चिरन्तन सत्य की व्यंजना करती है, अपना स्थायी प्रभाव छोड़ जाती है । कथा के अध्ययन के पश्चात् पाठक का मानस कुछ बेचैनी का अनुभव करता है । "सर्वपदाना" ( उप० गा० ८) भी सांसारिक अनित्यता और धर्मप्राप्ति की दुर्लभता का प्रभाव छोड़ती है । " पुण्य कृत्य की प्राप्ति” कथा, अपने स्वयं कृत् पुण्य-पाप का फल प्राप्त करनेवाला प्रत्येक व्यक्ति ही हैं, एक के द्वारा किये गये सत्-असत् कार्यों का फल दूसरे को नहीं मिल सकता है, आदि प्रभाव छोड़ती है । " प्रभाकर चित्रकार" कथा भी चिरन्तन सत्य का प्रभाव छोड़ती है। व्यक्ति को आवेग में आकर अपने विवेक को नहीं छोड़ना चाहिए। "माष तुष" कथा थोड़ा-सा आध्यात्मिक ज्ञान जीवन के लिए अधिक उपयोगी है, अन्धाज्ञान व्यक्ति और समाज का हितसाधन नहीं कर सकता है, आदि बातों का अमिट प्रभाव छोड़ती है । इस प्रकार हरिभद्र की प्राकृत लघु कथाओं में जीवन-निर्माण, मनोरंजन, मानसिक क्षुधा की तृप्ति, जीवन और जागतिक सम्बन्धों के विश्लेषण एवं चिरन्तन और युग सत्यों के उद्घाटन की सामग्री प्रचुर रूप में वर्तमान है । सामान्य रूप से ये सभी कथाएं दृष्टान्त या उपदेश कथाएं ही हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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