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________________ १०२ (८) रोचकता मध्य विन्दु तक रहती है, इसके आगे कथानक की एकरूपता के कारण अाकर्षण को कमी । (E) जीवन के शाश्वत मूल्यों का संयोजन--यथा प्रेम, त्याग, शील प्रभृति की घटनाओं द्वारा अभिव्यंजना । (१०) भाषा के सरल और सहज बोधगम्य रहने से प्रसाद गुण का पूर्ण समावेश । इन प्रमुख कथाकृतियों के अतिरिक्त संघतिलक सूरि द्वारा विरचित आरामसोहाकहा, पंडिअधणवालकहा, पुष्पचूलकथा, रोहगुप्तकथा, प्रारोग्यद्विजकथा, वज्रकर्णनृपकथा, शुभयतिकथा, भीमकुमारकथा, मल्लवादीकथा, मलबाहुकथा, पादलिप्ताचार्याकथा, सिद्धसेन दिवाकर कथा, नागदत्तकथा, बाह याभ्यन्तर कामिनीकथा, मेतार्य मुनिकथा, द्रवदंत राजर्षि कथा, पद्मशेखरकथा, संग्रामशूरकथा, चन्द्रलेखाकथा एवं नरसुन्दरकथा ये बीस कथाएं है । महेन्द्रसरि की नर्मदा सन्दरी कथा, देवचन्द्र सरि का कालिकाचार्य कथानक, सोमप्रभ का कुमारपाल प्रतिबोध, एवं अज्ञातनाम कवि की मलय सुन्दरी कथा भी विस्तृत धार्मिक उपन्यास है। उपदेशप्रद कथाओं में धर्मदास गणि की उपदेशमाला, हरिभद्र सूरि का उपदेशपद, जयसिंह सूरि की धर्मोपदेशमाला, जयकोत्ति की शीलापदेशमाला, विजयसिंह सूरि की भुवनसुन्दरी, मलधारी हेमचन्द्रसूरि की उपदेशमाला, साहड की विवेक मंजरी, मनिसुन्दर सूरि का उपदेशरत्नाकर, शुभवर्धनगणि की वर्धमान देशना एवं सोमविमल की दशदृष्टान्तगीता प्रादि रचनाएं भी महत्वपूर्ण हैं । __ चरित ग्रंथ भी श्रेष्ठ कथा ग्रंथ हैं । साहित्य की दृष्टि से उत्तम कथानों का विवेचन किया जा चुका है । देवेन्द्रसूरि का सुदंसणाचरिय और कण्हचरिय, मानतुंगसूरि का जयन्तीचरिय, जिनमाणिक्य का कुम्मापुत्तचरिय एवं गुणपाल मुनि का जंबुचरिय तथा रिसिदत्त चरिय ग्रंथ भी कथा साहित्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं । इन पौराणिक कथाओं को भी प्राकृत साहित्य के निर्माताओं ने सरस और आदर्श बनाया है । स्त्री और पुरुषों की विभिन्न भावनाओं एवं मनोवृत्तियों का बहुत ही सुन्दर विश्लेषण किया है । इस प्रकार कथा साहित्य आगमों से लेकर सोलहवीं शती तक निरन्तर विकसित होता रहा है । प्राकृत कथा साहित्य की उपलब्धियाँ १ । संस्कृत, अपभ्रंश और हिन्दी में प्रेमकथाओं का विकास प्राकृत कथाओं से हुआ है । “नायाधम्मकहाओ" में मल्ली का आख्यान आया है, जिससे छः राजकुमार प्रेम करते हैं। तरंगवती तो स्वतन्त्र रूप से एक प्रेमाख्यान है। इसने अपने प्रेमी को एक चित्र के सहारे प्राप्त किया है । "लीलावती कथा" अपने युग की परमोत्कृष्ट कथा ह । नियक्ति और भाष्यों में एक से एक सुन्दर जमकथामायी है। इन सभी प्राचीन कथाकृतियों का प्रमुख उद्देश्य शुद्ध प्रेम सम्बन्धी घटनागों का वर्णन करना ही नहीं है, अपितु व्रताचरण द्वारा प्रेम का उदात्त रूप दीक्षा और तपश्च ण दिखलाना है। साधारणतः प्राकृत कथाओं में प्रेम का उदय प्रत्यक्ष भेंट, स्वप्न दर्शन, विय दर्शन, गुणश्रवण, पक्षिदर्शन आदि के द्वारा दिखलाया गया है । प्राकृत कथाओं में राजार और राजकुमारियों को ही प्रेमी प्रेमिका के रूप में चित्रित नहीं किया गया, अगित मध्यवर्ग के सार्थवाह, सेठ-साहूकार, ब्राह्मण, कुम्भार, जुलाहा आदि में भी प्रेम की विभिन्न स्थितियां दिखलायी गयी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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