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________________ ( ९८ ) यथाचेश्वरादन्यस्यासंसारित्वं जीवपरयो भेदाभेदी तथोत्तरत्रांश नानाव्यपदेशा दित्येवमादौ विस्पष्ट वक्ष्यामः" [पृ० २६] "भेदाभेदयोहि सर्व प्रमाण सिद्धत्वा दुपपत्ति" (पृ०६२) इत्यादि वाक्यों में ब्रह्मप्रपंच और जीव ब्रह्म के भेदाभेद का स्पष्टतया उल्लेख है । तथा-" यक्तः शब्दान्तराच्च " (२ । १ । १८) इस सूत्र पर भाष्य करते हुए आप लिखते हैं "अवस्था तद्वतोश्च नात्यन्त भेदो नहि शुक्ल पटयोधर्मधर्मिणो रत्यन्त भेदः किन्त्वेक मेव वस्तु नहि निर्गुणं नाम द्रव्यमस्ति नहि निद्रव्योगणोस्ति तथोपलब्धः उपलब्धिश्च भेदाभेद व्यवस्थायां प्रमाणं प्रमाण व्यवहारिणां । तथा कार्य कारणयो र्भेदाभेदावनुभूयेतेअभेधर्मश्च भेदो यथा महोदधे रभेदः सएक तरङ्गाद्यात्मना वर्तमानो भेद इत्युच्यते नहितरंगादयः पाषाणादिष दृश्यन्ते तस्यैव ताः शक्तयः शक्ति शक्तिमतोश्चानन्यत्व मन्यत्वं चोपलभ्यते । यथाग्नेर्दहन प्रकाशनादि शक्तयो भेदाः यथाचवायोः प्राणादि वृत्तिभेदे (१) यह पाठ अशुद्ध प्रतीत होता है अन्य पुस्तक पास में न होने से हमने इसको अपनी बुद्धि के अनुसार ठीक करना उचित नहीं समझा। ले० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002141
Book TitleDarshan aur Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Sharma
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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