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________________ ( ९३ ) सत्वासत्व का अंगीकार करता है इस दशा में उसपर आक्षेप करना हमारे विचार में वृथा है । और सुप्रसिद्ध तार्किक रघुनाथ शिरोमणि ने तो यहां तक लिख दिया है कि "यदि घटखेन पटो नास्तीति प्रत्ययः स्वरसवाही लोकानां तदा व्यधिकरण धर्मा वच्छिन्न प्रतियोगिताकाभाव वारणं गीर्वाण गुरोरप्यशक्यम्” [ चिन्तामणि व्याख्या दीधिति ] अर्थात् घट रूप से पट नहीं यह प्रतीति यदि लोक में है तो व्यधिकरण धर्मावच्छिन्न प्रति योगिता का जो अभाव है [ घटत्वेनपटोनास्ति घटत्व रूप से पट कार्य कार्यात्मनाऽसद्भवद् कारणात्मना सदित्यभ्युद्यते तदेव कार्यात्मना कारणादन्यत् भवत् कारणात्मना ततोऽनन्यदिति प्रणिगद्यते । कार्यमात्रे चैष समानवर्चः । तथाच वैदिकाना मस्माकं कार्यात्मना कारणतोऽन्यद् भवदप्यस्ति प्रागुत्पत्तेः कारणात्मना तदनन्यदिदं पृथिव्यादिकं कार्य जगदिति ज्ञातव्यम् । ( पृ० ३६७-६८ | वे० सू० । बै० ट० ) ( ग ) - सदसत् ॥२॥ प्रागित्यनुवर्तते । प्राक् कारणात्मना सद् भवत्कार्यात्मना कार्य मसद् भवतीत्यर्थः 1 तदेव हि कारण व्यापारेण न कथंचिदुत्पद्यते, यत्केनापि रूपेणोत्पत्तेः पूर्वं सन्नभवेत् । यथा सिकतासुतैलं कार्यजातं तु प्रागुत्पत्तेः कारणात्मना सद्भवदेव कार्यात्मना भवत्यसत् । अतो नकश्चिद्दोष इति भावः । (वै० ० सू० वै० Jain Education International ० पृ० पृ १७४ | अध्या० ६ ० १ सू० २) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002141
Book TitleDarshan aur Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Sharma
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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