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________________ जैन धर्म-दर्शन का साहित्य (देशविरति), १३. संजम-उवसामणा अथवा चरित्तमोहणीय. उवसामणा (संयमविषयक उपशामना या चारित्रमोहनीय की उपशामना, १४. संजमक्खवणा अथवा चरित्तमोहणीयक्खवणा (संयमविषयक क्षपणा या चारित्रमोहनीय की क्षपणा) और १५. अद्धापरिमाणणिद्देस ( अद्धापरिमाणनिर्देश )। जयधवलाकार ने जिन पद्रह अर्थाधिकारों का उल्लेख किया है वे ये हैं : १. प्रेयोद्वेष, २. प्रकृतिविभक्ति, ३. स्थितिविभक्ति, ४. अनुभागविभक्ति, ५. प्रदेश विभक्ति-क्षीणाक्षीण. प्रदेश-स्थित्यन्तिकप्रदेश, ६. बन्धक, ७. वेदक, ८. उपयोग, ६. चतुःस्थान, १०. व्यञ्जन, ११. सम्यक्त्व, १२. देशविरति, १३. संयम, १४, चारित्रमोहनीय की उपशामना और- १५. चारित्रमोहनीय की क्षपणा । इस स्थान पर जयधवलाकार ने यह भी निर्देश किया है कि इसी तरह अन्य प्रकारों से भी पन्द्रह अर्थाधिकारों का प्ररूपण कर लेना चाहिए। इससे प्रतीत होता है कि कषायप्राभूत के अधिकारों की गणना में एकरूपता नहीं रही है। वैसे तो कषाय प्राभृत में २३३ गाथाएँ मानी जाती हैं किन्तु वस्तुत: इस ग्रंथ में १८० गाथाएँ ही हैं। शेष ५३ गाथाएँ कषायप्राभृतकार गुणधराचार्य-कृत न होकर सम्भवतः आचार्य नागहस्ति-कृत हैं जो व्याख्या के रूप में बाद में जोड़ी गई हैं। यह बात इन गाथाओं को तथा जयधवला टीका को देखने से स्पष्ट मालूम होती है । कषायाभूत के मुद्रित 'संस्करणों में भी सम्पादकों ने इनके पृथक्करण का पूरा ध्यान रखा है। आचार्य नागहस्ती कषायप्राभूतचूर्णिकार आचार्य यतिवृषभ के गुरु हैं। यतिवृषभाचार्य ने यद्यपि इन गाथाओं पर भी चूणिसूत्र लिखे हैं तयापि उनके कर्तृत्व के विषय में देखने से भी सम्पादको ना कषायप्रायद्यपि इन गाय में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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