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________________ ५३० बैन धर्म-दर्शन अर्थात् मक्षा असत्य का परित्याग शक्य नहीं होता। हाँ, वह स्थूल मृषावाद का त्याग अवश्य कर सकता है। इसीलिए श्रावक के लिए स्थूल प्राणातिपात-विरमण के विधान की भाँति स्थूल मृषावाद-विरमण का भी विधान किया गया है। स्थल झू का त्याग भी साधारणतया स्थूल हिंसा के त्याग के ही समान दो करण व तीन योगपूर्वक होता है। स्थूल झूठ किसे समझना चाहिए? जिस झूठ से समाज में प्रतिष्ठा न रहे, साथियों में प्रामाणिकता न मानी जाय, लोगों में अप्रतीति हो, राजदण्ड का भागी होना पड़े उसे स्थूल झूठ समझना चाहिए। इस प्रकार के झूठ से मनुष्य का चतुर्मुखी पतन होता है। अनेक कारणों से मनुष्य स्थूल झूठ का प्रयोग करता है । उदाहरण के लिए अपने पुत्र-पुत्रियों के विवाह के निमित्त सामने वाले पक्ष के सम्मुख झूठी प्रशंसा करना-करवाना, पशु-पक्षियों के क्रय-विक्रय के निमित्त मिथ्या प्रशंसा का आश्रय लेना, भूमि के सम्बन्ध में झूठ बोलना-बुलवाना, अन्य वस्तुओं के विषय में झूठ का प्रयोग करना, नौकरी आदि के लिए असत्य का आश्रय लेना, किसी की धरोहर आदि दबाकर विश्वासघात करना, झूठी गवाही देना-दिलाना, रिश्वत खाना-खिलाना, झूठे को सच्चा या सच्चे को झठा सिद्ध करने का प्रयत्न करना आदि । श्रावक के इस प्रकार का झूठ बोलने-बुलवाने का मन, वचन व तन से त्याग होता है। ... सावधानीपूर्वक स्थूल मृषावाद-विरमण व्रत का पालन करते हुए भी एतद्विषयक जिन अतिचारों-दोषों की संभावना रहती है वे प्रधानतया पाँच प्रकार के हैं. : १. सहसा-अभ्याख्यान, २. रहस्य-अभ्याख्यान, ३ स्वदार अथवा स्वपति-मंत्रभेद, ४.. मृषा-उपदेश, ५. कूट-लेखकरण । बिना सोचे-समझे, बिना Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org ..
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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