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________________ ४६६ जैन धर्म-दर्शन उदय होता है अथवा जो कषायों को उत्तेजित करते हैं उन्हें नोकषाय कहते हैं ।' नोकषाय के नौ भेद हैं : १. हास्य, २. रति, ३. अरति, ४. शोक, ५. भय, ६. जुगुप्सा, ७. स्त्रीवेद. ८. पुरुषवेद और ६. नपुंसकवेद । स्त्रीवेद के उदय से स्त्री को पुरुष के साथ संभोग करने की इच्छा होती है। पुरुषवेद के उदय से पुरुष को स्त्री के साथ संभोग करने की इच्छा होती है । नपुंसकवेद के उदय से स्त्री और पुरुष दोनों के साथ संभोग करने की कामना होती है। यह वेद संभोग की कामना के अभाव के रूप में नहीं अपितु तीव्रतम कामाभिलाषा के रूप में है जिसका लक्ष्य स्त्री और पुरुष दोनों हैं। इसकी निवृत्ति-तुष्टि चिरकाल एवं चिरप्रयत्नसाध्य है। इस प्रकार मोहनीय कर्म की कुल २८ उत्तर-प्रकृतियाँ-भेद हैं : ३ दर्शनमोहनीय+१६ कषायमोहनीय+६ नोकषायमोहनीय । ___ आयु कर्म की उत्तरप्रकृतियाँ चार हैं : १. देवायु, २. मनुष्यायु, ३. तिर्यञ्चायु और ४. नरकायु । आयु कर्म की विविधता के कारण प्राणी देवादि जातियों में रह कर स्वकृत नानाविध कर्मों को भोगता एवं नवीन कर्म उपाजित करता है। आयु कर्म के अस्तित्व से प्राणी जीता है और क्षय से मरता है । आयु दो प्रकार की होती है : अपवर्तनीय और अनपवर्तनीय । बाह्य निमित्तों से जो आयु कम हो जाती है अर्थात् नियत समय से पूर्व समाप्त हो जाती है उसे अपवर्तनीय आयु कहते हैं । इसी का प्रचलित नाम अकालमृत्यु है। जो आयु किसी भी कारण से कम न हो अर्थात् नियत समय पर ही समाप्त हो उसे अनपवर्तनीय आयु कहते हैं। १. कषायसहवर्तित्वात्, कषायप्रेरणादपि । हास्यादिनवकस्योक्ता, नोकषायकषायता ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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