SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४२ जैन धर्म-दर्शन तीर्थंकर : ___ 'तीर्थ' स्थापित करनेवाले को तीर्थकर कहते हैं । तीर्थ के अन्तर्गत साध, माध्वी, श्रावक और धाविका इन चार प्रकार के बतियों का समावेश होता है। मानव जीवन की ये चार अवस्थाएं मुक्तिप्राप्ति में सहायक होती हैं अर्थात् इनसे जो तीर्थ बनता है वह मुक्ति की ओर ले जाता है। तीर्थंकर सर्वज्ञ एवं मर्वदर्शी तथा सब प्रकार के दोषों से रहित होते हैं। वे तीर्थ अर्थात् धर्मसंघ की स्थापना करते हैं तथा धर्मोपदेश देते हैं । तीर्थकर अपनी माता के गर्भ में जिस दिन प्रवेश करते हैं उस रात में उनकी माता को १४ प्रकार के स्वप्न दिखाई पड़ते हैं-~१. सफेद हाथी, २. सुलक्षण उजला सांड़, ३. सुन्दर सिंह, ४. शुभ अभिषेक, ५. मनमोहिनी माला, ६. चन्द्र, ७. सूर्य, ८ सुन्दर पताका, ६. शुद्ध जल से पूर्ण तथा कमल के गुच्छों से शोभायमान कलश, १०. कमल से सुशोभित सरोवर, ११. क्षीरसागर, १२. देवविमान, १३. रत्नराशि और १४. अग्निशिखा।' ___ तीर्थङ्कर ३४ प्रकार के अतिशय अर्थात् वैशिष्ट्य से युक्त होते हैं- १. मस्तक के केश, दाढ़ी, मूछ, रोम और नखों का मर्यादा से अधिक न बढ़ना, २. शरीर का स्वस्थ एवं निर्मल रहना, ३. रक्त और मांस का गाय के दूध के समान श्वेत रहना, ४. पद्मगंध के समान श्वासोच्छवास का सुगन्धित होना, ५. आहार और शौच क्रिया का प्रच्छन्न होना, ६. तीर्थङ्कर देव के आगे आकाश में धर्मचक्र रहना, ७. उनके ऊपर तीन छत्र रहना, ८. दोनों ओर श्रेष्ठ चंवर रहना, ६. आकाश के समान स्वच्छ १. कल्पसूत्र, म्० ५. २. समवायांग, सम० ३४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy