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________________ अभिमत 'महावीर निर्वाण भूमि पावा : एक विमर्श' की रचना में श्री भगवती प्रसादजी खेतान ने जो परिश्रम किया है, वह सराहनीय है। उन्होंने पडरौना को प्राचीन पावा सिद्ध करने का जो प्रयत्न किया है, वह तर्कसंगत तो लगता है, किन्तु पावा का रूपान्तर पडरौना नहीं हो सकता है। पडरौना ‘पादरवन' से बना है। गुजराती में आज भी 'पादर' नगर के बाहरी भाग को कहते हैं। सम्भवतः उत्तर प्रदेश में उसे 'पाडर' कहते हों। हो सकता है कि पावा नगर लुप्त हो गया हो और उसके बाह्य भाग में पडरौना का विकास हुआ हो। यदि श्री खेतान जी का परिश्रम विद्वन्मान्य हो सके तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। पद्मभूषण पं० दलसुख भाई मालवणिया श्री भगवतीप्रसाद जी खेतान ने महावीर की निर्वाण भूमि प्राचीन पावा के अन्वेषण हेतु जो कठिन परिश्रम किया है, वह निश्चय ही स्पृहणीय है। एक व्यवसायी व्यक्ति में इतनी शोध-निष्ठा का होना स्तुत्य है । महावीर की निर्वाण भूमि ‘पावा' के संदर्भ में आज विद्वत् वर्ग में आम सहमति नहीं है। आदरणीय खेतान जी ने ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर 'पावा' को पडरौना के समीप अवस्थित होने की जो अवधारणा प्रस्तुत की है, वह विद्वत् वर्ग और समाज को मान्य हो सके, तो एक बड़ी उपलब्धि होगी। प्रस्तुत कृति में खेतान जी ने अपनी मान्यता के सन्दर्भ में जो सबल तर्क प्रस्तुत किये हैं, वे इतिहासज्ञों को इस दिशा में विचार करने को विवश करते हैं। उनका श्रम शोध की दिशा में एक नवोन्मेष देता है। प्रो० सागरमल जैन www.jainelibra
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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