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________________ १७० : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श की शाखा पकड़कर खड़ी हुई दिखाई दे रही हैं। महामाया की उठाई हुई दाहिनी भुजा के नीचे उनकी बहन प्रजापति गोतमी, गोतमी के दाहिनी ओर नवजात बुद्ध की पूजा करने हेतु ओय हुए इन्द्र तथा अन्त में थोड़ा पीछे की ओर सेविका खड़ी है। उनके सामने नवजात बुद्ध खड़े हैं। महामाया की विकृत मूर्ति की पूजा गाँव वाले रूममदेई देवी के रूप में करते हैं । अतः लुम्बिनी की महत्ता बुद्ध काल से चली आ रही है । कपिलवस्तु शाक्यों की राजधानी कपिलवस्तु लुम्बिनी के सन्निकट स्थित थी। १९७२ के पूर्व इसकी भौगोलिक स्थिति के विषय में विवाद रहा है। पहले इसे नेपाल स्थित तिलौराकोट से समीकृत किया जाता रहा है । बौद्ध साहित्य' में राजगृह से इसकी दूरी ६० योजन तथा साकेत से ६ योजन बताई गई है। चीनी यात्रियों के विवरण से भी इसकी पुष्टि होती है। सन् १९७२ में भारतीय सर्वेक्षण विभाग द्वारा बस्ती जनपद के पिपरहवा ग्राम के निकट विस्तृत उत्खनन हुआ। सिद्धार्थनगर जनपद ( उ० प्र०) की नौगढ़ तहसील में पिपरहवा एक महत्त्वपूर्ण ग्राम है । यह गोरखपुर-गोंडा मीटरगेज (पू० उ० रे० ) लाइन के नौगढ़ स्टेशन से २५.६ किमी० उत्तर नेपाल सीमा से सटा हुआ है। यह बस्ती से १०० किमी० तथा वर्डपुर से ७.५ किमी० उत्तर में स्थित है। स्तूप के शीर्ष पर एक विशाल बलुआ प्रस्तर की खण्डित पेटिका (४.४" x २'८.२५" x २'.२.२५" ) है। पेटिका में लकड़ी एवं चाँदी के अनेक खण्डित पात्र थे। इन पात्रों में धातु अवशेषों के अतिरिक्त अनेक स्वर्णाभूषण, दो नारियों की आकृतियों की छाप, स्वर्णपत्र पर हाथी तथा सिंह की आकृतियाँ, स्वर्ण एवं रजत के सितारे, ताबीज के आकार की सोने की डिब्बी, स्वर्ण त्रिरत्न, अविर्तयुक्त, स्वर्णचक्र, सोने को छड़ें, स्वर्ण पात्रों के लपेटे हुए टुकड़े, कई आकार के मोती, जिनमें से कुछ दो, तीन एवं चार की संख्या में परस्पर जुड़े हुए हैं इत्यादि बहुमूल्य वस्तुयें प्राप्त हुई हैं। ये सभी वस्तुयें कलकत्ता स्थित भारतीय संग्रहालय में सुरक्षित. १. पपंचसूदनी, सं० टाटिया, नथमल खण्ड २, पृ० १५२, नालन्दा, पटना, १९७५। २. थामस, ई० जे०, लाइफ आव बुद्ध ऐजलीजेण्ड हिस्ट्री, पृ० १६-१७, लंदन, १९५२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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