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________________ पावा-पड़रौना अनुशीलन : १३५ फाजिलनगर-सठियाँव को पावा के रूप में प्रतिपादित करने के सिद्धान्त को स्वीकार नहीं किया है। तत्पश्चात् उनकी गेरिक के साथ रिपोर्ट ऑफ टूर्स इन नार्थ एण्ड साउथ बिहार इन १८८०-८१, में पड़रौना को पावा के रूप में मान्यता देने के सिद्धान्त की पुष्टि की है। इससे यही प्रतीत होता है कि कनिंघम पड़रौना का वास्तविक पावा मान लेने के कारण कार्लाइल के सठियाँव-फाजिलनगर को पावा मानने के सिद्धान्त से बिल्कुल ही प्रभावित नहीं हुए थे। ___ कार्लाइल की रिपोर्ट से ज्ञात होता है कि वे इस क्षेत्र में अनेक वर्ष व्यतीत कर यहाँ के विभिन्न प्राचीन टीलों का उत्खनन करवाते रहे, किन्तु उन्होंने सठियाँव-फाजिलनगर के टीलों के उत्खनन करवाये बिना ही सठियाँव-फाजिलनगर को पावा की मान्यता दे दी। इसके विपरीत कनिंघम ने पड़रौना के प्राचीन टीले का उत्खनन करवाकर यहाँ की पुरातात्त्विक कलाकृतियों एवं सामग्रियों के आधार पर यह निश्चित रूप से घोषित कर दिया, कि पड़रौना ही पावा है। इससे यही प्रतीत होता है कि कार्लाइल ने संशय की स्थिति में रहने के कारण ही सठियाँव-फाजिलनगर के प्राचीन टोले का उत्खनन नहीं करवाया था। यदि वे इसका विधिवत् उत्खनन करवाये होते तो सठियाँव-फाजिलनगर को पावा घोषित नहीं कर पाते। विद्वानों में वैशाली-कुशीनगर मार्ग के विषय में मत-वैभिन्य है । जहाँ कार्लाइल, डॉ० राजबली पाण्डेय, बोद्धभिक्षु धर्मरक्षित आदि विद्वान् सठियाँव-फाजिलनगर को पावा के रूप में इस प्राचीन मार्ग पर प्रतिपादित करते हैं, वहीं बुकनन, कनिंघम, गेरिक, भरतसिंह उपाध्याय तथा बाजपेयी आदि विद्वान् पड़रौना को । उपर्युक्त अध्ययन पावा विषयक भौगोलिक अभिज्ञान प्राप्त करने में असमर्थ है । यह कितनी बड़ी विडम्बना है कि पावा की भौगोलिक स्थिति के विषय में कोई ठोस प्रमाण मिलने में सफलता नहीं मिल पायी है। यह विचारणीय प्रश्न है कि महावीर निर्वाणस्थली पावा कहाँ थी, तथा वहाँ आवागमन हेतु किस मार्ग का उपयोग किया जाता रहा है ? अब मूल प्रश्न मार्ग का है। बुद्धकालीन एवं पुरातात्त्विक साक्ष्य के आधार पर वैशाली, कुशीनगर प्राचोन मार्ग का अध्ययन अतिआवश्यक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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