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________________ ललित कलाएं और शिल्प-विज्ञान २३१ १२. रुंजा रुंजा का यशस्तिलक में केवल एक बार उल्लेख है। युद्ध के प्रसंग में सोमदेव ने लिखा है कि रुंजाओं की बहुत देर तक को गूंज से वोरलक्ष्मी के गृह-निकुंज जर्जरित हो गये। रुंजा की गणना अवनद्ध वाद्यों में की जाती है। यह काठ अयवा धातु का अठारह अंगुल लम्बा तथा ग्यारह अंगुल के दो मुंह वाला वाद्य है। मुंह पर कोमल चमड़ा मढ़ा जाता है तथा दोनों ओर के मुखों का चमड़ा डोरी से कसा हुआ होता है, जिसमें छल्ले या कड़े पड़े रहते हैं। इसके दाहिने मुख को एक टेढ़े बांस से घिस कर तथा बायें को एक लकड़ी से पीट कर बजाया जाता है। १३. घंटा घंटे का उल्लेख भी युद्ध के प्रसंग में है। सोमदेव ने लिखा है कि शत्रुकटकों की चेष्टाओं को लूटने वाले जयघंटे बजे। ___घंटा एक प्रकार का धन वाद्य कहलाता है। इसका प्रचलन अब भी है। विजय या युद्ध के अवसर पर जो घंटा बजाया जाता था, उसे जयघंटा कहते थे । घंटे छोटे-बड़े अनेक प्रकार के बनते हैं। १४. वेणु ___ यशस्ति लक में वेणु का उल्लेख दो बार हुआ है। यह एक सुषिर वाद्य है जो बांस में छिद्र करके बनाया जाता है। बांस का बनने के कारण ही इसे वेणु कहा गया। वेणु के उल्लेख प्राचीन साहित्य में बहुत मिलते हैं। आज भी इसका प्रचलन है और इसे बांसुरो कहा जाता है। १५. वीणा यशस्तिलक में वीणा का एक बार उल्लेख है। संगीत शास्त्र में तत ४१. स्फारितासु प्रदीर्घकूजितजर्जरितवरलक्ष्मीनिकेत निकुंजासु रुासु ।-पृ० ५८१ ४२. संगीतरत्नाकर ६।११०२-८ संगीतराज ३, ४, ४, ६८-७४ संगीतपारिजात २, १०७-१०६ ४३. जयन्तीषु विद्विष्टकटकचेष्टितलुठासु जयघंटासु ।-पृ० ५८२ ४४. संगीतरत्नाकर ६।१५ ४५. पृ० ५८२, पृ० ३८४ उत्त० ४६. पृ० ५८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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