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________________ ११६ प्रकार - अजीर्ण चार प्रकार का बताया गया है(१) जौ इत्यादि हलके पदार्थों के खाने से उत्पन्न । (२) गेहूँ इत्यादि पदार्थों के खाने से उत्पन्न । (३) दाल इत्यादि दो दल वाले पदार्थों के खाने से उत्पन्न । (४) घृत प्रादि स्निग्ध पदार्थों के खाने से उत्पन्न । परिचर्या - इन चार प्रकार के अजीर्ण को दूर करने के लिए यशस्तिलक में क्रम से चार साधन बताए गये हैं-: 50 यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन (१) जौ आदि के अजीर्ण को दूर करने के लिए ठंडा पानी पिए । (२) गेहूँ आदि के अजीर्ण को दूर करने के लिए गर्म (क्वथित) जल पिए । (३) दाल आदि के अजीर्ण को दूर करने के लिए अवन्तिसोम ( कांजी) पिए । (४) घृत इत्यादि से उत्पन्न अजीरण के लिए कालसेय (तक्र) पिए । मान्ध-- यशस्तिलक में दृग्मान्द्य के दो कारण बताए हैं— नमक या नमकीन पदार्थ अधिक खाना तथा धूप में से आकर तुरन्त पानी पी लेना । ४१ सोमदेव ने स्पष्ट रूप से दृग्मान्द्य को दूर करने के उपाय नहीं बताए, फिर भी उसके कारणों में हो दूर करने के उपायों की भी अभिव्यक्ति है । दृग्मान्द्य न हो इसके लिए व्यक्ति को उपर्युक्त दोनों बातों का बचाव रखना चाहिए । वमन – सोमदेव ने लिखा है कि थका हुआ व्यक्ति यदि तुरन्त भोजन कर ले तो वमन होने लगता है । ४२ ज्वर - - ज्वर के लिए भी यही कारण दिया है । ४३ ३९ भगन्दर—भगन्दर का कारण सोमदेव ने ' स्यन्दविबन्ध' अर्थात् मल के वेग को रोकना बताया है । ४४ भावप्रकाश में भल के वेग को रोकने से भगन्दर ३६. यवसमिथविदाहिष्वम्बुशीतं निषेव्यं, क्वथितमिदमुपास्यं दुर्जरेऽन्ने च पिष्टे । भवति विदलकालेऽवन्तिसोमस्य पान घृत विकृतिषु पेयं कालसेयं सदैव ॥ - पृ० १५६ ४०. वहीं, पृ० ११६ ४१. समधिकलवणान्नप्राशनाद्दृष्टिमान्द्यम् । –१० ११८ दृग्मान्द्यभागात्तपितोऽम्बुसेवी | पृ० ५०६ ४२. श्रान्तः कृताशो वमनज्वराः । - पृ० ५०९ ४३. वही, पृ० ५०६ ४४. भगन्दरी स्यन्दविबन्धकाले । - पृ० ५०६ Jain Education International तुलना -- शुक्रमलमूत्र मरुद्वेग संरोधोऽश्मरीभगंदर गुल्माशंसां हेतुः । - नीति• दि० ११ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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