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________________ यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन तैयार की गयी सामग्री : १. भक्त (५१६).-भात : पकाए गये चावलों को भात कहते हैं। भात के लिए यशस्तिलक में तीन शब्द आए हैं-१. दीदिवि (४०), २. भक्त (५१६) और ३. प्रोदन । . २. सूप (४०१, ५१६)-दाल : जिस अन्न के दो समान दल (टुकड़े) होते हैं, वह द्विदल कहलाता था। इसी का वर्तमान रूप 'दाल' पद में अवशिष्ट है। पकाई गयी दाल को सूप कहते थे। अच्छी तरह पकाई गयी दाल स्वर्ण के रंग की तरह पीली हो जाती है (कांचनच्छायापलापैः सूपैः, ४०१)। ३ शष्कुली (५१२)—खस्ता पूड़ी : शष्कुली चावल के आटे में तिल मिला कर घी अथवा तेल में पकाई जाती थी। यह कई प्रकार की बनती थी। बृहत्संहिता (७६, ९) में कामोद्दीपन करने वाली शष्कुली का उल्लेख है। अंगविज्जा (पृ० १८२) में दीर्घ शष्कुलि का उल्लेख है। २६ सोमदेव ने कांजी के साथ शष्कुली खाने का निषेध किया है ।२७ आगरा में अभी भी सावन-भादों में यह बनाई जाती है। ४. समिध (या सामिता) (५१६)--गेहूँ के आँटे की लप्सी : सामिता गेहूँ के आटे में मूग भरकर बनाया गया खाद्य था (सुश्रुत, ४६,३९८) ।२८ ५. यवागू (६९, ८८ उत्त०) : यवागू वैदिक काल से भारतीय भोजन का अङ्ग रही है । डॉ० अोमप्रकाश ने प्राचीन साहित्य के आधार पर इसके विषय में इस प्रकार जानकारी दी है-यजुर्वेद के अनुसार यवागू सम्भवतः जौ की बनती थी। महावग्ग (६, २४, ५) में इसे स्वास्थ्यकारक खाद्यान्न माना है । यवागू का एक विशेष प्रकार त्रिकटुक बीमारी में उपयोग किया जाता था। पाणिनि ने दो प्रकार की यवागू बतायी है—(१) पेया, (२) विलेपी। विलेपी को पाणिनि ने नखंपच कहा है । अङ्गविज्जा (पृ० १७९) में दूध, मक्खन तथा तेल डालकर बनायी गयी यवागू का उल्लेख है। सुश्रुत (४६, ३७६) ने फलों के रस से बनी यवागू को खाड यवागू कहा है । २९ २६. भोमप्रकाश-फूड एण्ड ड्रिंक इन शिएट इंडिया, पृ० २६१ ७. यशस्तिलक पृ०५१२ २८. उद्धत, ओमप्रकाश-वही. पृ. २६१ २६. भोमप्रकाश-वही, पृ० २६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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