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________________ उपासकदशांग : एक परिशीलन है, अतः इसे ऐसा करने से पहले ही रोक लेना चाहिये। ऐसा सोचकर उसे पकड़ने के लिए ज्योंहि उसने हाथ बढ़ाया तो उसके हाथ में खंभा आ गया और वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा। यह सुनकर उसकी पत्नी बहुला वहां पर आई और सारी बात सुनकर उसने कहा कि यह तो देव उपसर्ग था, जिससे आप विचलित हो गये, अतः आप प्रायश्चित्त कर आत्मशोधन करें | चुल्लशतक ने वेसा हो किया । देवलोकगमन-व्रताराधना करते हुए चुल्लशतक २० वर्ष पर्यन्त श्रावक-धर्म का पालन करता रहा । ग्यारह प्रतिमाओं को धारण किया। एक मास की सल्लेखना की और देहत्याग कर अरुणसिद्ध विमान में देव रूप में उत्पन्न हुआ। ६. कुण्डकौलिक महावीर के समय काम्पिल्यपुर नगर था। यह काम्पिल्यपुर वर्तमान में उत्तरप्रदेश में बूढी गंगा के किनारे बदायूं व फरूखाबाद के बीच स्थित कम्पिल नामक गाँव के रूप में है। उसके बाहर सहस्राम्र वन था। उस नगर में कुण्डकौलिक नामक प्रसिद्ध गाथापति रहता था। उसकी पत्नी का नाम पूषा था। कुण्डकोलिक के पास छः करोड़ स्वर्ण कोष में, छ: करोड़ व्यापार में, छ: करोड़ घर के वैभव में लगा हुआ था, प्रत्येक दस हजार गायों से युक्त छः गोकुल उसके पास अलग से थे। एक समय भगवान महावीर काम्पिल्यपुर नगरी के बाहर चैत्य में पधारे। कुण्डकौलिक भी भगवान के दर्शनार्थ आया व प्रतिबोधित होकर श्रावकधर्म ग्रहण किया। धर्माराधना-एक दिन कुण्डकौलिक अशोक वाटिका में गया, वहां अपने वस्त्राभूषण उतार कर पृथ्वीशिला-पट्ट पर रखे एवं स्वयं धर्मप्रज्ञप्ति की आराधना करने लगा। देव द्वारा परीक्षा-कुछ समय बाद वहाँ एक देव प्रकट हुआ, उसने वह वस्त्राभूषण उठा लिये एवं आकाश मार्ग में स्थित होकर कहने लगा, कि गोशालक के सिद्धान्त बहुत सुन्दर है। जो कुछ होना है वह निश्चित है तथा भगवान महावीर के सिद्धान्त निरर्थक हैं, गोशालक के अनुसार पुरुषार्थ व्यर्थ है और यही विचार उत्तम है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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