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________________ १५८ उपासकदशांग : एक परिशीलन श्रावक प्रज्ञप्तिटीका एवं प्रश्नोत्तरश्रावकाचार में मर्यादा के भीतर से अन्य व्यक्ति को जो मर्यादा से बाहर है, खासकर या शब्दों का इशारा करते हैं, उसे शब्दानुपात माना है ।' ४. रूपानुपात-उपासकदशांगसूत्रटीका में नियतक्षेत्र के बाहर का काम करने के लिये दूसरे को हाथ आदि का इशारा कर समझाना रूपानुपात है। यथा "अभिगृहीतदेशाबहिः प्रयोजन सङ्गावे शब्दमनुच्चारतएवपरे. षांस्वसमीपानयनाथं स्वशरीररूपानुदर्शन" श्रावकप्रज्ञप्तिटीका और प्रश्नोत्तरश्रावकाचार में बाहर के व्यक्ति को रूप दिखाकर काम लेना, रूपानुपात माना है।' ५. बहिःपुद्गल प्रक्षेप-उपासकदशांगसूत्रटीका में कंकड़ आदि फेंककर दूसरों को प्रबोधित करने को पुद्गलप्रक्षेप कहा है। यथा "प्रयोजन सङ्गावेपरेषांप्रबोधनायलेष्टादिपुद्गलप्रक्षेप" श्रावकप्रज्ञप्तिटीका एवं प्रश्नोत्तरश्रावकाचार में भी यही स्वरूप इसलिए कहा जा सकता है कि दिग्व्रत का ही सूक्ष्मरूप देशावकाशिकवत है, जिससे पूर्व में की गयी मर्यादा को कम किया जाता है। अपने जीवन को और अधिक संयमित बनाने के लिए इसको ग्रहण करना आवश्यक है । मर्यादित सीमा के बाहर से वस्तु मंगाना, भिजवाना, शब्द करके चेताना, रूप दिखाकर अपने भाव प्रकट करना तथा कंकड़ आदि फेंककर कार्य की सिद्धि करना इसके दोष हैं। १. (क) श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, १९१ (ख) प्रश्नोत्तरश्रावकाचार, १८/१६ २. उपासकदशांगसूत्रटीका-अभयदेव, पृ० ४५ ३. (क) श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, पृष्ठ १९१ (ख) प्रश्नोत्तरश्रावकाचार, १८/१८ ४. उपासकदशांगसूत्रटीका-अभयदेव, पृ० ४५ ५. (क) श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, पृष्ठ १९१/१९२ (ख) प्रश्नोत्तरश्रावकाचार, १८/१९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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