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________________ श्रावकाचार १४७ अतिचार बताये हैं । योगशास्त्र तथा श्रावकप्रज्ञप्ति ने असमीक्षाधिकरण को संयुक्ताधिकरण और सेव्यार्थाधिकता को उपभोगपरिभोगातिरेक नाम दिया है। इनके स्वरूप में अन्तर नहीं हैं ।' उपासकाध्ययन में अतिचार तो नहीं बताये परन्तु उपदेश से ठगी, आरम्भ, हिंसा का प्रवर्तन करना, शक्ति से अधिक बोझा लादना, दूसरों को अधिक कष्ट देने को हानियुक्त कार्य कहा है। उपयुक्त पांचों अतिचारों का विवरण इस प्रकार है :१. कन्दपं-सर्वार्थसिद्धि में राग की अधिकता से हास्यमिश्रित अशिष्ट वचनों के बोलने को कंदर्प कहा है। चारित्रसार, लाटीसंहिता. श्रावकप्रज्ञप्तिटीका में राग की तीव्रता से हँसी मिश्रित वचन को कंदर्प कहा है। २. कौत्कुच्य-चारित्रसार आदि में दूसरे मनुष्य पर शरीर की खोटी चेष्टा को दिखाते हुए राग से समाविष्ट, हंसी के वचन बोलना या अशिष्ट वचन बोलना कौत्कुच्य बताया है ।५ लाटीसंहिता, श्रावकप्रज्ञप्तिटीका में भी यही स्वरूप है। ३. मौखर्य- सर्वार्थसिद्धि में धृष्टता के साथ जो कुछ निरर्थक बकवाद ___ किया जाता है उसे मौखर्य कहा है। चारित्रसार, लाटीसंहिता और १. क तत्त्वार्थसूत्र, ७/१२ ख. पुरुषार्थसिद्धयुपाय १९० ग. श्रावकप्रज्ञप्ति, २९१ घ. चारित्रसार, पृष्ठ २४४ ङ. योगशास्त्र, ३/११४ च. सागारधर्मामृत, ५/१२ २. उपासकाध्ययन, ७/४२४ ३. 'रागोद्रेकात् प्रहासमिश्रो शिष्ट वाक्य प्रयोगः कन्दर्पः" -सर्वार्थसिद्धि, ७/३२ ४. क. चारित्रसार, २४४ ख. लाटीसंहिता, ५/१४१ ग. श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, २९१ ५. "रागस्य समावेशाद्वास्यवचनमशिष्टवचनमित्येतदुभयं परस्मिन् दुष्टेन कायकर्मणा युक्तं कौत्कुच्यम् -चारित्रसार, २४४-४५ ६. क. लाटोसंहिता, ५/१४२ ___ख. श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, २९१ ७. "धाष्टयप्रायं यत्किन्चनानर्थकं बहुप्रलपितं मौखर्यम्" -सर्वार्थसिद्धि, ७/३२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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