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________________ तीर्थकर, बुद्ध और अवतार को अवधारणा : तुलनात्मक अध्ययन : २७५ कृष्ण कथा के प्रसंग में कंस को जब पता चलता है कि यह शेषशय्या पर सोने वाला, शंख बजाने वाला तथा धनुष धारण करने वाला उनका शत्र है।' तो कंस इन्हीं प्रतिज्ञाओं के धारण करने वाले से अपनी कन्या के विवाह की घोषणा करता है। यहाँ पर कृष्ण ने उन प्रतिज्ञाओं का पालन किया है। किन्तु सत्यभामा के व्यंगात्मक वचनों के फलस्वरूप तीर्थंकर नेमिनाथ ने भी उक्त तीनों प्रतिज्ञाओं का प्रदर्शन किया। शेषशायी, पंचजन्य शंख एवं शाङ्गधनुष इन तीनों का स्पष्ट सम्बन्ध वैष्णव परम्परा में विष्णु से लिया जाता है । अर्थात् इन तथ्यों के आधार पर ही महापुराण में तीर्थंकर को विष्णु के सदृश या तद्रूपित कहा गया है। अवतार प्रयोजन ___सामान्यतः पुराणों में विष्णु के अवतार के साथ-साथ उनके अवतरण का लक्ष्य निहित होता है, इसी लक्ष्य के फलस्वरूप साधारण जन्म और अवतार में अन्तर है, किन्तु सिद्धान्ततः जैन परम्परा में उच्चकोटि के अवतारवाद को मान्यता नहीं है। इसका मुख्य कारण यह है कि जैनपरम्परा में अवतरण की अपेक्षा साधनात्मक उत्क्रमण पर बल दिया गया है। यद्यपि जैनपरम्परा में तीर्थङ्करों के दिव्य एवं अवतारानुरूप जन्मों के वर्णन में प्रयोजन विशेष का कोई संकेत नहीं मिलता है फिर भी महा१ "णायो मिज्जई विसहर समणे जो जलयरुआऊरइ वयणे जो सारंगकोठि गुण पावई, सो तुज्झु वि जमपुरि पहु दावइ ।" महा० पुराण जी० ३.८५.१७.११-१२ द्रष्टव्य-मध्यकालीन साहित्य में अवतारवाद, पृ० ९२ २. "जो फणि सयणि सुयई घणु णावइ; संखु ससासै पूरिवि दावइ । तहुं पहु देइ देसु दुहियइ सहुं, ता घाइयउ णिवहु संइ महुं महुँ ।" वही, जो०, पृ. ८५,१८, ९-१० : द्रष्टव्य वही, पृ० ९२ ३. वही, जी० ३, पृ० ८५, २२-२४ ४. "इय जं सर दुध्वयणीणं हउ तं लग्गउ तह अहिमाणमउ । णारायणं पहरणंसाल जहि परमेसरु पत्तउ शति तहिं । चप्पिउ कुप्परेहि फणिसयणु षणाविउ वाम पाएणं । घणु करि णिहिंउ संसुआऊरिउ जगु बहिरिउं णियाएणं ॥" वही, जी० ३, पृ० ८८, १९ दो० १९ और २० -द्रष्टव्य : मध्यकालीन साहित्य में अवतारवाद, पृ० १ २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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