SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएँ के कारण पुत्र का नाम नमिनाथ रखा गया । युवावस्था को प्राप्त होने पर माता-पिता ने पुत्र का योग्य कन्याओं के साथ विवाह किया। राज्य का पालन कर दीक्षित हुए और केवल ज्ञान प्राप्त किया । माता ने भी श्राविका व्रत ग्रहण किया तथा कर्मों का क्षय करके देवलोक में गईं । शिवादेवी र बाईसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि की माता शिवादेवी समुद्रविजय की धर्मशीला महारानी थीं । पूर्वभव के शंख राजा का जीव तीर्थंकर गोत्र का पुण्य उपार्जित कर शिवादेवी की कुक्षि में गर्भ रूप से उत्पन्न हुआ । माता ने चौदह शुभ स्वप्न देखे तथा परम भाग्यशाली पुत्र-लाभ की बात जान - कर बहुत प्रसन्न हुईं। गर्भकाल पूर्ण होने पर माता ने सुखपूर्वक पुत्र रत्न को जन्म दिया । भाग्यशाली पुत्र की माता को देवों ने आकर प्रणाम किया और जन्मोत्सव मनाया। बालक के गर्भकाल में रहते समय कई अनिष्ट टल गये तथा माता ने रत्नमय चक्र का दर्शन किया, अतः बालक का नाम अरिष्टनेमि रखा गया । ४ माता शिवादेवी, पिता समुद्रविजय तथा भाई श्रीकृष्ण ने अरिष्टनेमि की अनिच्छा होते हुए भी उग्रसेन राजा की सर्वगुण सम्पन्न कन्या राजी - मती से विवाह की तैयारी की परन्तु अहिंसा के पुजारी नेमिकुमार ने विवाह के अवसर पर वध किये जाने वाले निर्दोष पशुओं की पुकार सुन कर विवाह करने के बजाय दीक्षित होकर केवल ज्ञान प्राप्त किया | माता शिवादेवी भी दोक्षित होकर कर्मक्षय कर मृत्यु प्राप्त कर चौथे माहेन्द्र देवलोक में गईं । " १. (क) नगरं रोहिज्जति, देवी आहे, संठिता दिद्वा, पच्छा पणता रायाणो अष्टेय पच्चतिया रायाणो, पणतातेए नमी । -- आवश्यकचूर्णि, उत्त० पृ० ११ (ख) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित - पर्व ७ सर्ग ११, पृ० १९१ C , २. आ० हस्तीमलजी - जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग १, पृ० ५९८ ३. कल्पसूत्र १७१, अन्तकृद्दशा ८, उत्तराध्ययननियुक्ति पृ० ४९६, समवायांग १५७, तीर्थोद्गालिक ४८५ ४. आवश्यकचूर्णि — उत्त० पृ० ११ ५. पउमचरिय, उत्त. २१, गा. २ उद. जैन धर्म का मौलिक इतिहास, पृ० १४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy