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________________ प्रागैतिहासिक काल की जैन साध्वियां एवं विदुषी महिलाएं : १५ के बाद भगवान् को केवल-ज्ञान प्राप्त हुआ। माता सुव्रता भी कर्मों का क्षय कर तृतीय सनत्कुमार देवलोक में गई । अचिरादेवी : अचिरादेवी सोलहवें तीर्थंकर शान्तिनाथ की माता तथा हस्तिनापुर के महाराजा विश्वसेन की महारानी थी। पूर्वभव के मेघरथ का जीव माता अचिरादेवी की कुक्षि में उत्पन्न हुआ। माता ने मंगलकारी चौदह स्वप्न देखे। गर्भकाल पूर्ण होने पर माता ने कांचनवर्णीय पुत्र-रत्न को जन्म दिया। जन्म से कुछ समय पूर्व से ही हस्तिनापुर नगर एवं राज्य में महामारी का रोग फैला हुआ था। माता अचिरादेवी भी इस रोग के प्रसार से चिन्तित थी। पुत्र के गर्भ में आने के पश्चात् इस महामारी का भयंकर प्रकोप शान्त हो गया अतः पुत्र का नाम शान्तिनाथ रखा गया' । यौवन वय प्राप्त होने पर अनेक कन्याओं के साथ इनका विवाह हआ। कुछ वर्ष राज्य करने के पश्चात् उन्होंने दीक्षित होकर केवल-ज्ञान प्राप्त किया। माता अचिरादेवी भी अपने कर्मों का क्षय कर तृतीय सनत्कुमार देवलोक में गई। श्रीदेवी : ___ सत्रहवें तीर्थंकर कुंथुनाथ की माता श्रीदेवी हस्तिनापुर के राजा सूर की धर्मपत्नी थी। पूर्वभव के सिंहावह राजा ने दीक्षित हो, उच्च कोटि का तप तथा बीस स्थानक की आराधना करके तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन किया। वही जीव माता के गर्भ में अवतरित हुआ । उसी रात्रि के पिछले प्रहर में महारानी श्रीदेवी ने सर्वोत्कृष्ट महान् पुरुष के जन्म-सूचक चौदह परम-मंगलदायक शुभ स्वप्न देखे। गर्भकाल पूर्ण होने पर माता ने सुखपूर्वक पुत्र को जन्म दिया । देवताओं सहित इन्द्र ने आकर माता को प्रणाम किया तथा जन्मोत्सव मनाया। गर्भ काल में माता कुन्थु नामक रत्नों की राशि देखी थी अतः बालक का नाम कुन्थुनाथ रखा। माता-पिता ने बाल्यकाल पूर्ण होने पर युवा राजपुत्र का कई योग्य राजकन्याओं के साथ पाणिग्रहण करवाया। चक्ररत्न उत्पन्न होने पर कुन्थुनाथ षट्खण्ड पृथ्वी १. समवायांग १५७, १५८, तीर्थोद्गालिक ४७९, आवश्यक नियुक्ति ३९८ । २. चउपन्नमहापुरिषचरिय-१० १५० ३. समवायांग १५७-८, तीर्थोद्गालिक ४८०, आवश्यक (षडावश्यक) पृ० २८, उत्तराध्ययनवृत्ति, पृ० २३२, आवश्यक नियुक्ति ३८३. ३९८ । ... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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