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________________ प्रागैतिहासिक काल की जैन साध्वियां एवं विदुषी महिलाएँ : ३ गंभीर मुद्रा में समवसरण में विराजमान थे, उन्हें देखकर वे सोचने लगीं अहो ! वे तो संसार से विरक्त हो गये हैं । उनकी संसार विरक्ति को देखकर मरुदेवी के भी मोहावरण दूर हो गये, वे आर्तध्यान से शुक्लध्यान में लीन हुई, जिससे ध्यान का उत्कर्ष बढ़ा और समस्त कर्मों का क्षय होकर केवलज्ञान और केवलदर्शन की उत्पत्ति हुई तथा अन्ततः वे सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गईं । दिगम्बर परम्परा में मरुदेवी को केवल्य प्राप्ति और मुक्ति की अवधारणाएँ स्वीकृत नहीं हैं । सुमंगला : सुमंगला का पाणिग्रहण ऋषभदेव के साथ हुआ । ज्ञातव्य है कि ऋषभदेव और सुमंगला सहजात थे । ये यौगलिक परम्परा के अनुसार पति-पत्नी बने । सुमंगला ने पुत्र भरत सहित निन्यानबे पुत्रों तथा एक पुत्री ब्राह्मी को जन्म दिया । सुमंगलाने भरत जैसे यशस्वी पुत्रको जन्म देकर भारतवर्षके प्रथम चक्रवर्ती सम्राट की मां होनेका अनुपम गौरव अर्जित किया तथा लेखनकला की जननी ब्राह्मीको जन्म देकर अपने सुजन्म को कृतार्थं किया । इतिहास आपका सदैव स्मरण करेगा । सुनन्दा : नाभि कुलकरके युग तक यौगलिक परम्परा थी, जिसमें युवावस्थाको १. ( क ) भगवतो य छतादिच्छत्तं पेच्छंतीए चेव केवलनाणं उप्पन्नं, - आवश्यकचूणि, पृ० १८१ (ख) तं समयं च 'आयु खुट्ट सिद्धा, देवेहि य से पूया कता । -आवश्यकचूर्ण, पृ० १८.१ (ग) अन्ने भांति - भगवओ धम्मकहासदं सुणेंतीउ, तक्कालं च तीए खुट्टमाउयं ततो सिद्धा । आवश्यक मलय० वृ० २२९ २. देखिए आवश्यक नियुक्ति १९१, ३८३, ३९८, आवश्यकभाष्य ४; विशेषावश्यकभाष्य १६०७, १६१२-३; समवायांग १५८, तीर्थोद्गालिक २९३, आवश्यकवृत्ति ( मलयगिरि ) पृ० १९३; आवश्यकवृत्ति (हरिभद्रीय) पृ० १२६; कल्पसूत्रवृत्ति पृ० ४४८ ३. देखिए – आवश्यकचूर्णि १, पृ० १५२, आवश्यकवृत्ति (मलयगिरि), पृ० १९४, आवश्यक नियुक्ति १९९. विशेषावश्यकभाष्य १६०७, तीर्थोद्गालिक २८३, कल्पसूत्रवृत्ति (विनयविजय) पृ० २३१ - -- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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