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________________ प्रथम अध्याय प्रागैतिहासिक काल की जैन साध्वियाँ एवं विदुषी महिलाएँ मरुदेवी : वर्तमान अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की माता और अन्तिम कुलकर नाभिराय की पत्नी का नाम मरुदेवी था । नाभिराय की राज्य व्यवस्था क्षीण होने पर उनकी पत्नी मरुदेवी को कुक्षि में ऋषभदेव का जीवन सर्वार्थसिद्धि विमान से च्युत होकर अवतरित हुआ । गर्भावतरण के समय माता मरुदेवी ने शुभ स्वप्न देखे । तीर्थंकर अथवा महापुरुषों के गर्भावतरित होने पर उनकी माताओं को शुभ स्वप्न दिखाई देते हैं, ऐसी मान्यता है । इसी मान्यता के अनुसार मरुदेवी ने भी वृषभ, गज, सिंह, लक्ष्मी, पुष्पमाला, चन्द्र, सूर्य, ध्वजा, कुम्भ, पद्म-सरोवर, क्षीरसमुद्र, विमान, रत्नराशि और निर्धूमअग्नि इस तरह कुल चौदह स्वप्न देखे |R बालक के गर्भ में आने पर उसका प्रभाव माता के मानस पर तथा माता के मानस का प्रभाव उस गर्भ पर पड़ता है । यही कारण है कि किसी विशिष्ट जीव के गर्भ में आने पर माता श्रेष्ठ स्वप्न देखती है और वे सभी स्वप्न शुभ फल के प्रतीक माने जाते हैं । आवश्यक नियुक्ति के अनुसार ऋषभदेव की माता मरुदेवी ने प्रथम स्वप्न में वृषभ को अपने मुख में प्रवेश करते हुए देखा 3, यद्यपि यह स्वप्न परम्परा से भिन्न था क्योंकि अन्य परवर्ती तीर्थंकरों की माताओं ने प्रथम स्वप्न में गज को मुख में प्रवेश करते हुए देखा था । विदुषी मरुदेवी अत्यन्त मृदुभाषी तथा सरल स्वभाव की थीं । स्वप्न दर्शन के पश्चात् वे नाभि राजा से मिलीं तथा अत्यन्त बोधगम्य शब्दों में स्वप्न १. कल्पसूत्र ( पुण्यविजयजी) पृ० ( १४ दिगम्बर सम्प्रदाय में सोलह स्वप्न माने गये हैं) । महापुराण पर्व ११, श्लो० १०३ - १२०, पृ० २५९-२६० ( आचार्य जिनसेन ) पद्मपुराण पर्व ३, श्लो० १२४ - १३९, पृ० ४०-४१ ( आचार्य रविषेण ) २. त्रिषष्टिपर्व ४, पृ० १९९ ३. आवश्यकनियुक्ति मलय वृत्ति पृ० १६३-१ Jain Education International - स्वप्न का विस्तृत वर्णन परिशिष्ट में देखें । १,१६८ । लोकप्रकाश, सर्ग ३०, श्लो० ५९, सर्ग For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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