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________________ [ ११ ] कार्य पूर्ण करसफलता प्राप्त कर सकी। महविद्यालय की जिम्मेदारियों के निर्वहन में अत्यन्त व्यस्त रहकर भी आप सदैव तत्परता से मेरी समस्याओं का समाधान कर मुझे प्रोत्साहित करते रहे। आदरणीय लुनिया जी की आत्मीयता एवं प्रेरणा से ही मैं इस कार्य को पूर्ण कर सकी, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा। प्रो० आई० एस० मेहता ने भी समय-समय पर मेरा उत्साहवर्धन किया। न्यायाधीश श्री मुरारीलाल तिवारी ने जैन विदुषी महिलाओं के कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर प्रकाश डालकर मार्गदर्शन किया। आप सबके प्रति मैं अत्यन्त कृतज्ञ है। समस्त पुस्तकालयाध्यक्षोंइन्दौर कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, इन्दौर विश्वविद्यालय, अहिल्या केन्द्रीय पुस्तकालय, इन्दौर जनरल लायब्ररी, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन-को भी मैं अत्यन्त आभारी हूँ, जिन्होंने समय-समय पर पुस्तकें प्रदान कर मुझे सहयोग दिया। श्रीमान् हस्तीमलजी झेलावत, सेक्रेटरी, स्थानकवासी समाज ने मुझे पुस्तकें उपलब्ध करने में सहयोग प्रदान किया एवं साध्वी वर्ग से साक्षात्कार हेतु प्रोत्साहित किया। साध्वी वर्ग के सर्वेक्षण कार्य में, उनसे प्राप्त सूचनाओं का विश्लेषण करने में तथा साध्वी समाज की उन्नति के लिए मेरे पतिदेव पद्मश्री डॉ० एन० एल० बोरदियाने कई रचनात्मक सुझाव दिये हैं। मैं अपने जीवन में उनकी ही प्रेरणा से आज तक ज्ञानवर्धन करती रही हूँ। श्री गोपीवल्लभजी त्रिवेदी ने लेखन की अशुद्धियों के सुधार ने में सहयोग दिया । श्री पं० नाथूलालजी ने दिगम्बर साहित्य में महिलाओं के चरित्र सम्बन्धी सामग्री एकत्रित करने में सहयोग प्रदान किया। इन समस्त महानुभावों के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रदर्शित करती हूँ। ग्रन्थ के प्रकाशन हेतु मेरे पुत्र स्वामी ब्रह्मेशानन्दजी की प्रेरणा और पार्श्वनाथ विद्याश्रम के वर्तमान निर्देशक डॉ० सागरमल जी का सहयोग भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। उन्होंने अपने संस्थान के सहयोगियों के माध्यम से इसका प्रकाशन सम्भव बनाया है और भूमिका और परिशिष्ट के द्वारा इस ग्रन्थ को पूर्णता प्रदान की है । अतःउनकी मैं आभारी हूँ। ___ अन्त में मैं उन समस्त विद्वानों, मित्रों एवं सहयोगियों की भी आभारी हूँ, जिन्होंने प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से इस शोध कार्य में मुझे सहयोग प्रदान किया। हीराबाई बोरदिया चैत्र शुक्ल त्रयोदशी २८ अप्रैल १९९१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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