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________________ प्रागैतिहासिक काल की जैन साध्वियां एवं विदुषी महिलाएँ : ४३ दीर्घायु है'। इस पर मिश्रकेशी ने कहा, "हे सखी, चरम शरीरी (उसी शरीर से तथा उसी भव में मोक्ष जाने वाला आत्मा चरम शरीरी कहलाता है) विद्युत्प्रभ जो धीर-वीर तथा विद्याओं का पारगामी है, वही इसका पति होने योग्य है, यह सच है कि वह थोड़े ही वर्षों में मुनि पद धारण कर लेगा, किन्तु अमृत थोड़ा भी हो तो अमत ही है"२ । सखियों के इस वार्तालाप में अंजना का मौन पवनंजय के क्रोध व घृणा का कारण बना । पवनंजय के मन में यह संदेह हो गया कि अंजना विद्युत्प्रभ की ओर आकर्षित है। इसी सन्देह के कारण पवनंजय पत्नी अंजना का तिरस्कार. बाईस वर्षों तक करते रहे । युद्ध में जाते समय भी पत्नी की शुभ कामनाओं का उत्तर अनादर व अपमान से दिया। ___मार्ग में सैन्य के साथ प्रथम पड़ाव पर एक चकवी को चकवे के विरह में आर्तनाद से विरहाकुल होते देख उन्हें अपनी प्रिया अंजना की स्मृति हो आई३ । वे पत्नी के साथ किये गये कठोर व्यवहार से स्वयं ही पश्चात्ताप करने लगे। वे पत्नी से मिलने को व्याकुल हो गये और मित्र प्रहसित के साथ रात को ही अंजना के महल में पहुँचे। पवनंजय ने अपने अविवेकी कृत्य के लिये क्षमा मांगी। इस प्रकार पति को अपने शयनकक्ष में देख अंजना आनंदविभोर हो गई और पति मिलन के आनंद का उपभोग करने लगी। प्रातःकाल जब पवनंजय जाने लगे तो अंजना ने उनसे अनुरोध किया कि वे अपने यहाँ आने का सन्देश माता-पिता को अवश्य दे देवें । पर लज्जावश पवनंजय ने राज्य प्रासाद में किसी को सूचित नहीं किया तथा अपनी नामांकित मुद्रिका अंजना को देकर पड़ाव की ओर चल दिये। (उस समय पवनंजय संकोच को त्याग कर अपने आने की सूचना दे देते तो इस कथा का कुछ और ही रूप होता)। पति के समागम के कारण अंजना गर्भवती हुई । सास-श्वसुर ने पुत्रवधू को कलंकित मानकर नगर से जाने को कहा। पिता महेन्द्र ने भी लोकलाज के कारण पूत्री को आश्रय नहीं दिया । गर्भवती अंजना अपनी सखी के साथ निर्जन वन में गई-जहाँ महामुनि अमिगगति ने अंजना के पूर्व १. हेमचन्द्राचार्य, त्रिषष्टिशलाकापुरुष, पर्व ७, सर्ग ३, पृ० ४३ २. रविषेणाचार्य, पद्मपुराण, भाग १, पृ० ३४३ ३. (क) वही भाग १, पर्व १६, पृ० ३४५-३४६ (ख) हेमचन्द्राचार्य, त्रिषष्टिशलाकापुरुष, पर्व ७, सर्ग ३, पृ० ४३-४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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