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________________ जैनेतर परम्पराओं में महिसा ६३ संयुत्त निकाय -- संयुत्त निकाय के 'मल्लिका सुत्त' में राजा प्रसेनजित के कहने पर कि 'अपने से प्यारा कोई नहीं है' बुद्ध कहते हैं सभी दिशाओं में अपने मन को दौड़ा, कहीं भी अपने से प्यारा दूसरा कोई नहीं मिला, वैसे ही, दूसरों को भी अपना बड़ा प्यारा है, इसलिए, अपनी भलाई चाहने वाला दूसरे को मत सतावे । १ आगे चलकर 'ब्राह्मण संयुक्त्त' के अहिंसक सुत्त में भारद्वाज ब्राह्मण के द्वारा अपने को अहिंसक घोषित करने पर, अहिंसक शब्द को पारिभाषित करते हुए बुद्ध ब्राह्मण से कहते हैं- जैसा नाम है वैसा ही होवो, तुम सच में अहिंसक ही होवो, जो शरीर से, वचन से और मन से हिंसा नहीं करता वही सच में अहिंसक होता है, जो पराए को कभी नहीं सताता । सातवें परिच्छेद के 'लक्षण संयुक्त्त' में गृद्धकूट पर्वत पर विहार करने वाले लक्षण और महामौद्गल्यायन के बीच हुए वार्तालाप के सन्दर्भ में बुद्ध के द्वारा यह बताया गया है कि हत्या करने अथवा हिंसा करने के क्या परिणाम होते हैं । कथानक इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है - एक समय गृद्धकूट पर्वत पर से उतरते हुए महामौद्गल्यायन ने कुछ देखकर मुस्करा दिया, इससे लक्षण के मन में आशंका हुई और उन्होंने मुस्कराने का कारण पूछा, तब अपने मुस्कराने का कारण वे बुद्ध के समक्ष कहते हैं 'आउस ! गृद्धकूट पर्वत से उतरते हुए मैंने हड्डियों के एक कंकाल को आकाश मार्ग से जाते देखा । उसे गीध भी, कौए भी और चील भी झपट - झपट कर नोचते थे, टुकड़े-टुकड़े कर देते थे, और वह आर्त्तस्वर कर रहा था ।' तब बुद्ध कहते हैं 'भिक्षुओ ! पहले मैंने भी उस सत्त्व को देखा था, किन्तु किसी को नहीं कहा । यदि मैं कहता तो शायद दूसरे नहीं मानते । जो मुझे नहीं मानते उनका यह चिरकाल तक अहित और दुःख १. संयुक्त निकाय, पहला भाग, पृष्ठ ७१. २ संयुक्ता निकाय, पहला भाग, पृष्ठ १३२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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