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________________ जैनेतर परम्पराओं में श्रहिंसा २५ अलोभ आदि को कल्याणकर एवं आत्मा के आठ गुण बताए हैं और कहा है कि जो व्यक्ति चालीस प्रकार की धर्मविधियों ( इन्होंने अपने धर्म-सूत्र में प्रस्तुत की हैं ) का पालन करता है लेकिन यदि उसकी आत्मा ऊपर कथित गुणों को धारण नहीं करती तो उसे न ब्रह्म की प्राप्ति हो सकती है और न स्वर्ग की हो । ठीक इसके विपरीत जो चालीस धर्मविधियों में से कुछेक का पालन करता है और आठ गुणों को धारण करता है उसे ब्रह्म की प्राप्ति होती है, साथ ही स्वर्ग की भी । ' १ ऐसा लगता है बल्कि समाज इस प्रकार गृह्य सूत्रों को देखने से तो लगता है कि अहिंसा का सिद्धान्त जो उपनिषद् काल में चला वह स्मृतिकाल में कुछ दृढ बना परन्तु सूत्रकाल में लुप्तप्रायः हो गया । क्योंकि, गृह्यसूत्रों में सब जगहों पर एवं सभी गृह्यकार्यों में मांस का प्रयोग बताया गया है । इसकी पूर्ति एवं पुष्टि धर्मसूत्रों में भी होती है जहाँ श्राद्ध, भक्ष्यअभक्ष्य आदि के वर्णन मिलते हैं । किन्तु धर्मसूत्रों के दूसरे अंशों को पढ़ने से, जहां पर संन्यासी और ज्ञानी के वर्णन हैं, कि अहिंसा का सिद्धान्त बिल्कुल मर नहीं चुका था के एक कोने में खड़ा काँप रहा था। चूंकि सूत्रों में अहिंसा की प्रधानता खासतौर से संन्यासी या मुक्ति चाहने वाले विरक्त लोगों के जीवन में ही दी गई है और यह सामान्यतौर से सोचने की भी बात है कि जिस समाज में साधारण खान-पान ही नहीं बल्कि शादी, श्राद्ध, अतिथि सत्कार तथा छोटे-बड़े यज्ञों में भी पशुबलि का विधान किया गया हो, वहाँ अहिंसा के सिद्धान्त का विकसित होना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य था । फिर भी चाहे जिस रूप में भी रहा हो लेकिन यदि अहिंसा का सिद्धान्त जिन्दा था तो उन लोगों को कम श्रेय नहीं दिया जा सकता जिन लोगों ने उसे जीवित रखा । वाल्मीकि रामायण : - महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण जिसे उनके नाम के साथ ही सम्बन्धित कर दिया गया है, संस्कृत साहित्य का एक अति प्रसिद्ध महाकाव्य है और ब्राह्मण धर्म एवं संस्कृति में इसे एक ऊँचा स्थान १. गौतम धर्मसूत्र, ७०.२२-२५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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