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________________ १० जैन धर्म में हिंसा की गई है । जल, औषधियां, वनस्पतियाँ, सभी देवता एवं ब्रह्म सब के सब शान्ति देने वाले हों । विश्व ही पूर्ण शान्तिमय हो । इन उक्तियों को देखकर क्या कोई कह सकता है कि वैदिक युग में अहिंसा-भाव का संचार न था । भले ही अहिंसा शब्द पर उस समय कोई प्रकाश नहीं दिया गया हो ऐसा माना जा सकता है लेकिन भाव रूप में तो अहिंसा की पूरी अभिव्यक्ति हुई है । यद्यपि ऋग्वेद और अथर्ववेद में अहिंसा की सीमा मात्र मनुष्य तक ही दिखाई गई है किन्तु यजुर्वेद में अहिंसा भाव का पूर्ण विकास मिलता है जहाँ पर सभी प्राणियों के प्रति मैत्री का भाव व्यक्त किया गया है और विश्व शान्ति की कामना की गई है । उपनिषद् : उपनिषदों को वेदान्त भी कहते हैं क्योंकि ये वेदों के अन्तिम भाग माने जाते हैं । इनकी संख्या काफी अधिक है जिनमें से कुछ तो प्रसिद्ध और महत्त्वपूर्ण हैं पर कुछ ऐसे हैं जिन्हें गौण स्थान प्राप्त है और वे लघु उपनिषद् के नाम से जाने जाते हैं । रचना-काल के दृष्टिकोण से कौषीतकि, तैत्तिरीय, महानारायण, बृहदारण्यक, छान्दोग्य और केन उपनिषद् बुद्ध और पाणिनि से काफी पहले के हैं । इन उपनिषदों के कुछ बाद कठ, श्वेताश्वतर, ईश, आदि की रचना हुई । पर ये सब भी बुद्ध से बाद के पहले के ही हैं । · उपनिषदों ने कर्मकाण्ड यानी यज्ञादि से ज्यादा ज्ञानकाण्ड को प्रधानता दी है । इनमें बहुदेवतावाद का स्थान ब्रह्मवाद को मिलता है और सांसारिक सुख-सुविधा के बदले उपनिषद् - कालीन लोग मोक्ष पर जोर देते हैं । यद्यपि उनके भोजन आदि में 1 १. द्यौः शान्तिरन्तरिक्षं शान्तिः पृथ्वी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः । वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवा: शान्ति ब्रह्म शान्तिः सर्व शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ।। यजु०वे० ३६. १७. 2. Vedic Age (Ed. R. C. Majumdar), p. 493. Jain Education International मुण्डक, प्रश्न नहीं बल्कि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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