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________________ जैनेतर परम्पराधों में श्रहिंसा ठीक इसी तरह की प्रार्थना तैत्तिरीय संहिता' एवं शतपथ ब्राह्मण २ में मिलती है । किन्तु यहाँ " प्रजा" शब्द भी दो अर्थ रखता है- सन्तान एवं जनता । परन्तु दोनों ही अर्थों में यह संकुचित और स्वार्थाधीन जान पड़ता है । यदि कोई अपनी सन्तान के रक्षार्थ प्रार्थना करे अथवा कोई राजा अपनी जनता को बचाने के लिए प्रार्थना करे तो ये दोनों ही प्रार्थनाएँ अहिंसा के सिद्धान्त की पुष्टि नहीं करतीं क्योंकि अहिंसा का सिद्धान्त ऐसी स्वार्थपरता से बिल्कुल ही परे है । यह सर्वव्यापक है, अर्थात् सभी जीवों के लिए है । इसके अलावा ऋग्वेद में यों कहा गया है "सब देवों के लिये उपयुक्त छाग पूषा के ही अंश में पड़ता है । उसे शीघ्रगामी अश्व के साथ सामने लाया जाता है । अतएव त्वष्टा देवता के सुन्दर भोजन के लिए अश्व के साथ इस छाग से सुखाद्य पुरोडाश तैयार किया जाय । ४ १. प्रेदग्ने ज्योतिष्मान्याहि शिवेभिरचिभिस्त्वम् । बृहद्भिर्भानुभिर्भासन्माहिसीस्तनुवा प्रजाः ॥ तैत्तिरीय संहिता, ४. २. ३. ३; ५. २. २.७-८. २ प्रदग्ने ज्योतिष्मान्याहि । शिवेभिचिभिष्ट्वमिति प्रेदग्ने त्वं ज्योतिष्मान्याहि शिवेभिरचिभिर्दीप्यमानैरित्येतद् बृहद्भिर्भानुभिर्भासमा हिंसीस्तन्वा प्रजा इति बृहद्भिरचिभिर्दीप्यमानै महिसी रात्मना प्रजा इत्येतत् MEN शतपथ ब्राह्मण, काण्ड ६, प्र० ८, ब्राह्मण १. ३. जैन धर्म में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह आदि का पालन महज इसलिए किया जाता है कि अपनी श्रात्मा की शुद्धि हो, इसमें दूसरे के हित की बात उद्देश्यरूप में नहीं आती है । मतएव इस दृष्टिकोण से हिंसा भी स्वार्थ की सीमा के अन्दर आ जाती है । किन्तु सामान्य दृष्टिकोण से हिंसा का सिद्धान्त पर हितकारी समझा जाता है । और ऐसी हालत में जहाँ अपने लोगों के हित की बात आती है तो उससे इसे अलग समझना ही उचित समझा जाता है । ४. एषच्छाग: पुरो अश्वेन वाजिना पूष्णो भागो नीयते विश्वदेव्यः । अभिप्रियं यत्पुरोडाशमर्वता त्वष्टेदेनं सौश्रवसाय जित्वति । ऋ० ० १. १६२. ३; हिन्दी ऋग्वेद – रामगोविन्द त्रिवेदी, पृष्ठ २४०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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