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________________ जैनेतर परम्परानों में हिंसा ६५ धार्मिक, दार्शनिक, नैतिक, राजनीतिक एवं सामाजिक विचारों को अपने ढंग से इस तरह विश्लेषित किया कि उनके द्वारा किए गए विश्लेषण ने ही एक नई परम्परा को जन्म दे दिया, जैसे वैदिक परम्परा में शंकराचार्य के द्वारा किया गया उपनिषदों का विवेचन ही अपने आप में एक दर्शन बन गया है । फिर भी कनफ्यूशियस साहित्य में पाँच ग्रन्थ आते हैं : १. प्रमाण साहित्य ( Book of Records ) । २ लघु-गान साहित्य ( Book of Odes ) । ३. परिवर्तन साहित्य ( Book of Changes ) । ४. वसन्त एवं शरद साहित्य ( Spring and Autumn Annals ) । ५. इतिहास ( Book of History )। कनफ्यूशियस के विचारों में श्रेष्ठजन ( Superiors ) की कल्पना की गई है और उनमें अच्छे गुणों का होना आवश्यक बताया गया है । इसी सिलसिले पर कहा गया है कि एक श्रेष्ठ व्यक्ति के लिए तीन बातें आवश्यक हैं' : १. जब तक शारीरिक विकास अपनी पूर्णता को प्राप्त नहीं हुआ है, उन्हें मांस ग्रहण करने में स्वतंत्र नहीं होना चाहिए । २. युवापन में, जब जवानी मदमाती हुई हो, युद्ध करने की प्रवृत्ति पर रोकथाम रखनी चाहिए । ३. वृद्धावस्था में अभिलाषाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए । इससे लगता है कि कनफ्यूशियस ने मांसादि ग्रहण करने का पूर्णतः विरोध नहीं किया है । यदि कोई इस पर नियंत्रण करता भी है तो मात्र एक उम्र विशेष तक ही, जीवन के पूरे समय तक नहीं । किन्तु अपने शिष्यों के विभिन्न प्रश्नों का उत्तर देते हुए कनफ्यूशियस ने यह भी कहा है- 'जीवन के प्रवाह में प्यार की 1. G. W. R., p. 225. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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