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________________ निश्चयाभास एवं व्यवहाराभास । २५५ स्पष्ट भाषा सांकेतिक भाषा ८. जीव अनुपचरित असद्भूत- ८. जीव के शुभाशुभ परिणामों के व्यवहारनय से द्रव्यकर्मों का कर्ता तथा निमित्त से द्रव्यकर्मों की उत्पत्ति होती है उनके सुखदुःखात्मक फल का भोक्ता है। और द्रव्यकर्मों के निमित्त से जीव के सुखदुःखात्मक परिणाम की। ___. जीव उपचरित असद्भूतव्यवहार- ९. जीव के योगोपयोग के निमित्त नय से घट, पट आदि का कर्ता है। से मिट्टी घट-पटादिरूप में परिणमित होती है। १०. स्त्री, पुत्र, धन आदि उपचरित १०. स्त्री, पुत्र, धन आदि संयोगअसद्भूतव्यवहारनय से जीव के हैं। सम्बन्ध की अपेक्षा जीव के कहलाते हैं। इन उदाहरणों के अनुसार सांकेतिक भाषा में किये गये निरूपणों को यदि तत्काल स्पष्ट भाषा में समझा दिया जाय, तो प्राथमिक श्रोता नयात्मक कथन के रहस्य को सरलता से ग्रहण करने में समर्थ होंगे और एकान्तवाद की व्याधि से बच जायेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002124
Book TitleJain Darshan me Nischay aur Vyavahar Nay Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size12 MB
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