SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निश्चय-व्यवहार मोक्षमार्गों में साध्य-साधकभाव / १६५ प्रीतम छबि नयनन बसै, पर छबि कहाँ समाय । भरी सराय रहीम लखि, आप पथिक फिर जाय ।। - जिन आँखों में अपने आराध्य की छवि बसी होती है, उनमें किसी दूसरे की छवि कैसे समा सकती है ? सराय भरी देखकर पथिक अपने आप लौट जाता है। इस प्रकार तीव्रकषायोदयरूप संक्लेशपरिणाम के निमित्तों को टालने के लिए भक्ति एक शक्तिशाली उपाय है। स्वाध्याय की मनोवैज्ञानिकता स्वाध्याय भी इसका एक उत्तम साधन है। इसके द्वारा मन तत्त्वों के गूढ़ चिन्तन में खो जाता है। फलस्वरूप वस्तुस्वभाव के चिन्तन-मनन से जो स्वपरतत्त्व, हिताहित एवं हेयोपादेय का विवेक होता है उसके बल से चारित्रमोह का तीव्रोदय नहीं हो पाता। चित्त खाली न रहने से उसमें विषय-वासनाओं का भी प्रवेश नहीं होता। भक्त कवि तुलसीदास जी ने यह तथ्य इस सूक्ति में अत्यन्त हृदयस्पर्शी शब्दों में प्रस्तुत किया है - मन पंछी तब लगि उडै विषयवासना माँहि । ज्ञान बाज की झपट में जब लगि आया नाँहि ।। पंडित टोडरमल जी का कथन है – “तत्त्वनिर्णय करते हुए परिणाम विशुद्ध होते हैं, उससे मोह के स्थिति-अनुभाग घटते हैं।" तत्त्वचिन्तनजन्य आनन्दानुभूति के निमित्त से असातावेदनीय का भी उदय नहीं हो पाता। यदि उसका उदयकाल आ जाता है, तो सातावेदनीय में संक्रमित होकर सातारूप फल ही देता है। इस तरह स्वाध्याय भी तीव्रकषायोदय का निरोधकर विशुद्ध परिणामों के विकास का शक्तिशाली माध्यम है, कदाचित् भक्ति से भी अधिक। क्षमा-समता-अहिंसादि भावों की मनोवैज्ञानिकता . आत्मा के अपने क्षमा, समता, धैर्य, विवेक, अहिंसा ( अनुकम्पा.) आदि भाव भी तीव्रकषायोदय के निमित्तों को निष्प्रभावी बनाने के अमोघ साधन हैं। ___ 'चारित्रसार' में कहा गया है - 'क्रोधोत्पत्तिनिमित्तानां सन्निधानेऽपि १. मोक्षमार्गप्रकाशक/पृ० ११२ २. सज्झायं कुव्वंतो पंचिन्द्रियसंवुडो तिगुत्तो य । हवदि य एयग्गमणो विणएण समाहिओ भिक्खू ।। मूलाचार/गाथा ९७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002124
Book TitleJain Darshan me Nischay aur Vyavahar Nay Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy