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________________ जैन योग का आलोचनात्मक अध्ययन जिनका वर्णन आगे किया जायेगा । यहाँ संक्षेप में उनका सार बता देना अभीष्ट है, जिससे कि प्रस्तुत विषयवस्तु का अर्थ स्पष्ट हो सके। उपनिषद् में जहाँ योग को ब्रह्म के साथ साक्षात्कार करानेवाली क्रिया के रूप में स्वीकार किया गया है, वहाँ गीता में कर्म करने की कुशलता का ही नाम योग है। योगदर्शनानुसार जहाँ चित्तवृत्ति का निरोध ही योग माना गया है, वहाँ बौद्धयोग में उसे बोधिसत्त्व की प्राप्ति करानेवाला कहा गया है। जैनयोग में आत्मा की शुद्धि करानेवाली क्रियाएँ ही योग हैं। इस तरह योग को किसी-न-किसी प्रकार आत्मा को उत्तरोत्तर विकसित करनेवाले साधन के रूप में स्वीकार किया गया है। 'योग' शब्द एवं उसका अर्थ - 'योग' शब्द 'युज्' धातु से बना है। संस्कृत व्याकरण में दो युज् धातुओं का उल्लेख है, जिनमें एक का अर्थ जोड़ना या संयोजित करना है' तथा दूसरे का समाधि, मनःस्थिरता है । अर्थात् सामान्य रीति से योग का अर्थ सम्बन्ध करना तथा मानसिक स्थिरता करना है। इस प्रकार लक्ष्य तथा साधन के रूप में दोनों ही योग हैं। इस शब्द का उपयोग भारतीय योगदर्शन में दोनों अर्थो में हआ है। 'योग' शब्द का सम्बन्ध 'युग' शब्द से भी है जिसका अर्थ "जोतना' होता है, और जो अनेक स्थलों पर इसी अर्थ में वैदिक साहित्य में प्रयुक्त है। 'युग' शब्द प्राचीन आर्य-शब्दों का प्रतिनिधित्व करता है। यह जर्मन के जोक (Jock), ऐंग्लो-सैक्सन Anglo-Saxon) के गेओक (Geoc), इउक (Iuc), इओक (Ioc), लैटिन के इउगम (Iugum) तथा ग्रीक जुगोन (Zugon) की समकक्षता या समानार्थकता में देखा जा सकता है। गणितशास्त्र में दो या अधिक संख्याओं के जोड़ को योग कहा जाता है । भारतीय दर्शन का अन्तिम उद्देश्य मुक्ति की प्राप्ति है और उसके लिए योगदर्शन, बौद्धदर्शन तथा जैनदर्शन में क्रमशः कैवल्य, निर्वाण तथा मोक्ष शब्द का प्रयोग हुआ है, जो अर्थ की दृष्टि से समान ही हैं। १. युजपी योगे।-हेमचंद्र, धातुमाला, गण ७ २. युजिच समाधौ।-वही, गण ४ ३. दर्शन और चिंतन, प्रथम खण्ड, पृ० २३० ४. Yoga Philosophy, p. 43 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002123
Book TitleJain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArhatdas Bandoba Dighe
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size13 MB
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