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________________ १७८ जैन योग का आलोचनात्मक अध्ययन यह स्तम्भन कार्य में पीत, वशीकरण में लाल, शोभित अवस्था में मगे के समान, द्वेष में कृष्ण, कर्मनाशक अवस्था में चंद्रमा के समान उज्ज्वल वर्ण का होता है। इस प्रकार यह प्रणव-ध्यान पद से बने 'ॐ' शब्द का होता है, जिसको लक्ष्य करके साधक आत्मविकास की ओर बढ़ता है । इस ध्यान से अनेक प्रकार की शक्तियों एवं आत्मबल की वृद्धि होती है और साथ ही कर्मक्षय भी होता है । पंचमरमेष्ठी नामक ध्यान में प्रथम हृदय में आठ पंखुड़ीवाले कमल की स्थापना करके कणिका के मध्य में “सप्ताक्षर अरहताण' पद का चिन्तन किया जाता है। तत्पश्चात् चारों दिशाओं में चार पत्रों पर क्रमशः ‘णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं तथा णमो लोए सव्वसाहणं' का ध्यान किया जाता है तथा चार विदिशाओं के पत्रों पर क्रमशः 'एसो पंचणमुक्कारो सव्वपावप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं हवइ मंगल' का ध्यान किया जाता है । शुभचंद्र के मतानुसार पूर्वादि चार दिशाओं में तो णमो अरहताणं आदि का तथा चार विदिशाओं क्रमशः 'सम्यग्दर्शनाय नमः, सम्यग्ज्ञानाय नमः, सम्यक्चारित्राय नमः तथा सम्यक् तपसे नमः' का स्मरण किया जाता है। साधक इन्हीं पर अपनी सम्पूर्ण भावनाओं को एकाग्र करके आत्म-सिद्धि में संलग्न होता है। इनके अतिरिक्त कुछ ऐसे भी मंत्र हैं, जिनका नित्य जप करने से मनोव्याधियों की शान्ति होती है, कष्टों का परिहार होता है तथा कर्मों का आस्रव रुक जाता है। सोलह अक्षरों से युक्त मंत्र को षोडशाक्षर १. पीतस्तम्भेऽरुणं वश्ये क्षोभणे विद्रुमप्रभम् । कृष्णं विद्वेषणे ध्यायेत् कर्मघाते शशिप्रभम् ॥ --योगशास्त्र, ८१३१ २. अष्टपत्रे सिताम्भोजे कणिकायां कृतस्थितिम् । आद्यं सप्ताक्षरं मन्त्रं पवित्रं चिन्तयेत्ततः ।। सिद्धादिक-चतुष्कं च दिकपत्रेषु यथाक्रमम् । चूलापाद-चतुष्कं च विदिक्पत्रेषु चिन्तयेत् ।। -वही, ८१३३-३४ ३. दिग्दलेषु ततो न्येषु विदिक्पत्रेष्वनुक्रमात् । सिद्धादिकचतुष्कं च दृष्टिबोधादिकं तथा ॥ -ज्ञानार्णव, ३५।४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002123
Book TitleJain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArhatdas Bandoba Dighe
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size13 MB
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