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________________ १०५ योग के साधन : आचार क्रम वर्णित है और स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा' में सम्यग्दृष्टि नामक एक और प्रतिमा जोड़कर बारह प्रतिमाओं का उल्लेख है। दोनों परम्पराओं के अनुसार प्रथम चार प्रतिमाओं में कोई अन्तर नहीं है। सचित्तत्याग का क्रम दिगम्बर-परम्परा में पांचवाँ है जब कि श्वेताम्बर-परम्परा में सातवां है। दिगम्बराभिमत 'रात्रिभुक्तित्याग' श्वेताम्बराभिमत पाँचवीं प्रतिमा 'नियम' में समाविष्ट है। ब्रह्मचर्य प्रतिमा श्वेताम्बर-परम्परा में छठी है जब कि दिगम्बर-परम्परा में सातवीं है। दिगम्बरसम्मत 'अनुमतित्याग' श्वेताम्बरसम्मत 'उद्दिष्टत्याग' में ही समाविष्ट हो जाती है, क्योंकि इस प्रतिमा में श्रावक उद्दिष्टभक्त ग्रहण न करने के साथ ही किसी प्रकार के आरम्भ का समर्थन भी नहीं करता और श्वेताम्बराभिमत श्रमणभूतप्रतिमा ही दिगम्बराभिमत उद्दिष्टत्यागप्रतिमा है। इन ग्यारह प्रतिमाओं का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है । १. दर्शनप्रतिमा-दर्शन अर्थात् सम्यक्दृष्टि । इस प्रतिमा के धारक श्रावक को सर्वगुण विषयक प्रीति उत्पन्न होती है, दृष्टि की विशुद्धता प्राप्त होती है और वह पंचगुरुओं के चरणों में जाकर दृष्टिदोषों का परिहार करता है। वसुनन्दिश्रावकाचार के अनुसार वह पाँच उदुम्बर फलादि और सात व्यसनों का त्याग करता है। १. सम्मदंसण-सुद्धी रहिओ मज्जाइ-थूल-दोसेहिं । वयधारी सामाइउ पव्ववइ पासुयाहारी ॥३०५॥ .. राइ-भोयण-विरओ मेहुण-सारंम संग चत्तो य । कज्जाणुमोय-विरओ उद्दिट्ठाहार-विरदी य ॥३०६॥ -स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा २. जैन आचार, पृ० १३०-३१ ३. श्रावकपदानि देवैरेकादश देशितानि येषु खलु । स्वगुणाः पूर्वगुणैः सह सन्तिष्ठन्ते क्रमविवृद्धाः ॥ -रत्नकरण्डश्रावकाचार, ७११३६ ४. पंचुबर सहियाई परिहरेइ जो सत्त विसणाई । सम्मत्तविसुद्धमई सो सणसावयो भणिो ॥ -वसुनन्दिश्रावकाचार, २०५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002123
Book TitleJain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArhatdas Bandoba Dighe
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size13 MB
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