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________________ उपसंहार [ १९३ एवं दिगम्बर मदनकीर्ति पर एक समूचा प्रबन्ध लिखा। बौद्धधर्म की बातों और यामिनी भाषा के शब्दों का भी अपने ग्रन्थ में उसने यत्रतत्र प्रयोग किया है। इस प्रकार राजशेखर की लेखनी ने साम्प्रदायिकता की सीमा तोड़ दी। फलतः राजशेखर हृदय और लेखनी दोनों से धर्म-निरपेक्ष था। कालक्रम ने भी उसके इतिहास-दर्शन की एक कसौटी का कार्य किया है । राजशेखर के इतिहास-दर्शन की आधारशिला यदि उसके स्रोत हैं तो कालक्रम वे ईटें हैं जिन पर उसने इतिहास भवन का निर्माण किया। प्रबन्धकोश ने लगभग १०३० वर्षों की कालक्रमीय अवधि को समेटा है जिसके लिए राजशेखर का प्रयास स्तुत्य है । उसने प्रबन्धकोश को तिथियों और कालक्रम से जैसा गुम्फित कर दिया है उससे प्रतीत होता है कि राजशेखर को इतिहास की सच्ची पकड़ थी । अतः प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक मोल उसके कालक्रमीय आँकड़ों में है। यद्यपि प्रबन्धकोश की कतिपय तिथियाँ कुछ महीनों या दिनों की गणना में त्रुटिपूर्ण हैं तथापि यह सहज निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि मेरुतुङ्ग के अलावा राजशेखर जैन प्रबन्धकारों में प्रथम लेखक है जिसने कालक्रम को इतिहास का एक अभिन्न अंग माना और उसका निर्वाह भी किया है। प्रबन्धकोश में समकालीन तथ्यों को प्रस्तुत करने की भरसक चेष्टा की गयी है। ऐसा प्रयास और साहस उसके पूर्व के किसी भी प्रबन्ध ग्रन्थ में, यहाँ तक कि प्रबन्धचिन्तामणि में भी नहीं दीख पड़ता है। राजशेखर ने प्रबन्धकोश में न केवल 'प्रबन्ध' की परिभाषा दी अपितु उसने इतिहास को, जो अब तक केवल युद्धों और राजसभाओं तक सीमित था, सामान्यजन के धरातल पर ला खड़ा कर दिया। अतः ऐतिहासिक विकासक्रम में राजशेखर का यह महत्वपूर्ण योगदान है। इसलिए भी राजशेखर के प्रबन्धों को इतिवृत्त के बजाय इतिहास कहना अधिक उपयुक्त होगा। एक शोधकर्ता की भाँति राजशेखर ने नवीन तथ्यों की प्रस्तुति, उपलब्ध तथ्यों की नयी व्याख्या और तथ्यों का सिद्धान्ततः निरूपण किया है । तथ्यों के इसी सैद्धान्तिक निरूपण के समय राजशेखर का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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