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________________ १३८ ] प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन को स्रोत-ग्रन्थों, साक्ष्यों एवं परम्पराओं पर आधारित मानता था। उसके विचारानुसार योग्य परम्परा तथा सुनी-सुनायी बातें ही इतिहास का निर्माण करती हैं । अतः वह ग्रन्थारम्भ में ही परम्पराओं को स्पष्ट करता है और कहता है कि यहाँ पर मैंने 'गुरुमुखश्रुतानां' ( गुरुमुख से सुने हुए) विस्तृत एवं रस-सम्पन्न चौबीस प्रबन्धों का संग्रह किया है। 'गुरुमुखश्रुतं' का प्रयोग राजशेखर ने अन्तिम प्रबन्ध में भी किया है । वह वस्तुपाल और तेजपाल के सुकृत्यों की विस्तृत सूची गुरुमुख द्वारा सुनी गयी, बातों के आधार पर तैयार कर लिखता है। उन दोनों के कीर्तन ( इतिवृत्त ) चारों दिशाओं में सुनायी पड़ते हैं। ग्रन्थागत सामग्रियों की प्रामाणिकता के सम्बन्ध में राजशेखर स्वयं कहता है कि उसने अपने वर्णनों को वृद्धजनों तथा पूर्ववर्ती ग्रन्थों द्वारा प्रदत्त परम्पराओं पर आधारित किया है। पादलिप्ताचार्य-प्रबन्ध में राजशेखर ने परम्परा या अनुश्रुति को मान्यता प्रदान करते हुए कहा- 'वहाँ ( पादलिप्तपुर में ) हेमसिद्धविद्या अवतरित है, ऐसा वृद्धों ने कहा है। बप्पभट्टसूरि प्रबन्ध में - आमराजा द्वारा गोपगिरि-प्रासाद के निर्माण का जो विस्तृत वर्णन राजशेखर ने किया है, वह वृद्धों द्वारा कहा हुआ है।' वृद्धवादि-सिद्धसेन प्रबन्ध में राजशेखर ने परम्परा को ऐतिहासिक परिधान में आविष्ट कर दिया है। वह चर्चा करता है कि भिन्न-भिन्न आचार्यों से तक्षक के फण-मण्डप में विष विद्यमान था, ऐसी अनुश्रुति है। १. 'इदानीं वयं गुरुमुख श्रुतानां विस्तीर्णानां रसाढ्यानां चतुर्विशतेः प्रबन्धानां ___ सङग्रहं कुर्वाणः स्म ।' प्रको, पृ० १।। २. 'परं गुरुमुखश्रुतं किञ्चिल्लिख्यते । " तयोः कीर्तनानि श्रूयन्ते ।' दे०, वही, पृ० १२९-१३० । ३. 'बहुश्रुतमुनीशेभ्यः प्राग्ग्रन्थेभ्यश्च कानिचित् । , उप श्रुत्येतिवृत्तानि वर्णयिष्ये कियन्त्यपि ॥' वही, पृ० १ । ४. 'तत्र हेमसिद्धविद्याज्वतरिता स्तीति वृद्धाः प्राहुः ।' वही, पृ. १३ । ५. ... प्रासाद कारयामासे गोपगिरी ।""इति वृद्धाः प्राहुः ।' प्रको: पृ० २९ । ६. वही, पृ० ८६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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