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________________ नेमिदूतम् [ १३ काले कोऽस्मिन् वद यदुपते ! जीवितेशावृतेऽन्यः, सद्यःपाति प्रणयि हृदयं विप्रयोगे रुणद्धि ॥१०॥ अन्वयः - ( हे ) यदुपते ! नवजलधरश्यामम्, आकाशम्, वीक्ष्य, उद्दाम कामाविर्भावेन व्यथितवपुषः, विह्वलायाः, योषितः, विप्रयोगे, सद्यः पातिप्रणयि हृदयम्, जीवितेशाद्, ऋते, कः, अन्यः, अस्मिन् काले, रुणद्धि, वद । वीक्ष्याकाशमिति । यदुपते ! नवजलधरश्यामम् आकाशं वीक्ष्य हे नाथ ! नूतनमेघकृष्णं नभो खं वा अवलोक्य । उद्दामकामाविर्भावेन व्यथितवपुषः उत्कटमनोभवोल्लासेन पीडितं शरीरं यस्या सा तस्याः राजीमत्याः इत्यर्थः । विह्वलायाः योषितः विक्लवायाः स्त्रियः राजीमत्याः । विप्रयोगे विरहे प्रेमिणः इति शेषः । सद्यः पाति प्रणयि हृदयं तत्क्षणविनाशशीलं प्रेमपूर्ण जीवनम् प्रणयाभावात् प्रायः कठिनहृदयाः स्त्रियो भवन्तीति भावः । जीवितेशाद् ऋते भर्तुः विना इत्यर्थः । कः अन्यः कोऽपरः, अस्मिन् काले वर्षासमये। रुणद्धि वद नह्यति त्वं कथय ॥ १० ॥ ___ शब्दार्थः - यदुपते-हे प्राणनाथ नेमि, नवजलधरश्यामम्-नूतन (जल को धारण करने वाले ) कृष्णमेघ वाले आकाशम्-आकाश को, वीक्ष्यदेखकर, उद्दामकामाविर्भावेन-उत्कट काम के आविर्भाव से, व्यथितवपुषःपीडित शरीर, विह्वलायाः योषितः-विह्वल स्त्री का, विप्रयोगे-(पति के) विरह में, सद्यः पाति-तुरन्त टूट जाने वाला, प्रणयिहृदयम्-प्रेमयुक्त हृदय को, जीवितेशाद्-प्रिय के, ऋते-विना, कः-कौन, अन्यः-दूसरा, अस्मिन् काले-वर्षा समय में, रुणद्धि-रोके रहता है, वद-बोलो। अर्थः -हे प्राणनाथ यदुपते ! नूतन ( जल को धारण करने वाले ) कृष्णमेघ वाले आकाश को देखकर, उत्कट काम के आविर्भाव से पीड़ित शरीर वाली विह्वला स्त्री के पति के विरह में तुरन्त टूट जाने वाले प्रेमयुक्त हृदय को पति के अतिरिक्त दूसरा कौन वर्षाकाल में रोके रहता है, बोलो। टिप्पणी - सद्यः पाति -सद्यः पतितुं शीलमस्य, इस विग्रह में सद्यस् इस उपपदपूर्वक 'पत्' धातु से 'णिनि' प्रत्यय करके 'उपपदमतिङ्' से समास करके वृद्धयादि करके सद्यः पाति ऐसा रूप बनता है । सद्यः पातिहृदयम्अर्थात् पति के विरह में जीवन धारण करने वाली स्त्री कठिन हृदया होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002117
Book TitleNemidutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikram Kavi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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