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________________ प्रकाशकीय बहुमुखी प्रतिभा के धनी जैनाचार्यों ने उत्कृष्ट आत्म-साधना के साथसाथ प्रभूत साहित्य की भी रचना की। साहित्य की लगभग सभी विधाओं में उन्होंने ग्रन्थ प्रणीत किये । उनके द्वारा रचित दूतकाव्य भी उच्चकोटि के हैं। जैनाचार्यों द्वारा विरचित दूतकाव्य जैन दूतकाव्य के नाम से अभिहित किये जाते हैं। मेरुतुङ्गाचार्य विरचित जैनमेघदूत, चारित्रसुन्दरगणि विरचित शीलदूत, विक्रमकवि विरचित नेमिदूत और जिनसेन कृत पाश्र्वाभ्युदय इस विधा के प्रतिनिधि ग्रन्थ हैं। निवृत्तिमार्गी श्रमण-परम्परा की विशेषताओं के अनुरूप ही जैनाचार्यों की कृतियों में शृंगार पक्ष लगभग गौण रहा है और वैराग्य भावना अधिक मुखरित हुई है। नेमिदूत के कर्ता विक्रम कवि खम्भात निवासी श्वेताम्बर खरतरगच्छीय श्री जिनेश्वर सूरि के श्रावक भक्त थे । नेमिदूतम् में राजीमती के विरह-दग्ध हृदय की भावनाओं का चित्रण पाया जाता है। विरक्त नेमिकुमार की तपोभूमि में पहुँचकर राजीमती उन्हें अपनी ओर अनुरक्त करने का निष्फल प्रयास करती है। अन्त में पति के त्याग-तपश्चरण से प्रभावित हो वह स्वयं भी तपश्चर्या करने लगती है। जैनाचार्य विरचित साहित्यिक कृतियों को विद्वज्जगत के सम्मुख लाने की योजना के अन्तर्गत पार्श्वनाथ शोधपीठ ने अद्यावधि जैनमेघदूतम् और शीलदूतम् का विस्तृत भूमिका के साथ हिन्दी अनुवाद प्रकाशित किया है । इसी क्रम में नेमिदूतम् को भी संस्कृत टीका, हिन्दी अनुवाद और भूमिका सहित प्रकाशित करते हुए हमें अत्यन्त हर्ष का अनुभव हो रहा है। भूमिका, अनुवाद और टीका डॉ० धीरेन्द्र मिश्र की है। डॉ० धीरेन्द्र ने अपने ग्रन्थ के प्रकाशन का अवसर हमें दिया, इसके लिए हम उनके बहुत आभारी हैं। टीका, अनुवाद के संशोधन तथा प्रूफ-संशोधन में डॉ. अशोक कुमार सिंह ने सहयोग किया, एतदर्थ वे धन्यवाद के पात्र हैं। ग्रन्थ के सुन्दर एवं सुरुचिपूर्ण मुद्रण के लिए हम श्री सन्तोष कुमार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.002117
Book TitleNemidutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikram Kavi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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