SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भूमिका [ ३५ जैसे शृङ्गारी काव्य को अनुपम शान्तिरसान्वित काव्य में परिणत करना कवि की श्लाघनीय प्रतिभा का मधुर विलास है। 'पार्वाभ्युदय' के स्वरूप-ज्ञान के लिए दो पद्य द्रष्टव्य हैं तीव्रावस्थे तपति मदने पुष्पवाणैर्मदङ्ग तल्पेऽनल्पं दहति च मुहुः पुष्पभेदैः प्रक्लप्ते । तीव्रापाया त्वदुपगमनं स्वप्नमात्रेऽपि नाऽऽपं क्रूरस्तस्मिन्नपि न सहते सङ्गमं नौ कृतान्तः ।। ४/३५ ।। उक्त पद्य चतुर्थ चरण की पूर्ति के कारण 'पादवेष्टित' है तो निम्नलिखित पद्य उत्तरमेघ ( श्लो० २३ ) की आदि पादद्वयी को एक-एक पाद से संवलित करने के कारण 'एकान्तरित' है उत्संगे वा मलिनवसने सौम्य निक्षिप्य वीणां गाढोत्कण्ठं करुणविरुतं विप्रलापायमानम् । मद्गोत्राकं विरचितपदं गेयमुद्गातुकामा त्वामुद्दिश्य प्रचलदलकं मूर्च्छनां भावयन्ती ॥ ३/३८ ।। काव्य में वर्णित प्रकृति-चित्रण भी बड़ा ही आकर्षक है। रेवा नदी का वर्णन करते हुए कवि रेवा को पृथिवी की टूटी हुई मोतियों की माला बता कर उसके किनारे जंगली हाथियों की दन्तक्रीड़ा और पक्षियों के मधुर कलरव का वर्णन कर नदी तट का सुन्दर चित्र प्रस्तुत करता है गत्वोदीची भुव इव पृथं हारयष्टि विभक्तां वन्येभानां रदनहतिभिभिन्नपर्यन्तवप्राम् । वीनां वृन्दैर्मधुरविरुतरात्ततीरोपसेवां रेवां द्रक्ष्यस्युपलविषमे विन्ध्यपादे विशीर्णाम् ॥ १/७५ ॥ यहाँ ध्यातव्य है कि जिनसेन मात्र एक कवि ही नहीं अपितु विचक्षण तार्किक भी थे। मनोवृतम् किसी अज्ञात जैन आचार्य की इस कृति में कुल ३०० पद्य हैं। इस काव्य की मूल प्रति पटण' के भण्डार में सुरक्षित है। मयूरवृतम् शिखरिणी छन्द में निबद्ध १८० पद्यों वाले इस आध्यात्मिक काव्य के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002117
Book TitleNemidutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikram Kavi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy