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________________ भूमिका 'बंग साहित्य परिचय' में उद्धृत (पृ० ८५० ) 'रघुनाथ दास' प्रणीत 'हंसदत' का प्रतिपाद्य विषय, कृष्ण के मथुरा चले जाने पर राधा की मूर्छावस्था को देखकर ललिता नामक सखी द्वारा वहाँ विद्यमान एक हंस को देख उसे दूत बनाकर राधा का सन्देश कृष्ण तक पहुँचाना, है तथा 'वेंकटेश' कवि रचित 'हंसदत' का वर्ण्य विषय सीता-विरह से सन्तप्त श्री राम के द्वारा हंस को दूत बनाकर अपना सन्देश सीता तक पहुँचाना और कवि 'कविन्द्राचार्य' प्रणीत ४० पद्यों वाले 'हंसदत' की कथावस्तु एक विरहिणी प्रेमिका द्वारा हंस को दूत बनाकर अपना सन्देश प्रियतम तक पहुँचाना है। इस कृति का नामोल्लेख तंजौर राजमहल के 'हस्तलिखित संस्कृत ग्रन्थों की सूची' (ए० सी० बर्नेल ) में ( पृ० १६३ पर ) हुआ है। हमसन्देश ___ 'हंसदूत' की तरह 'हंससन्देश' नामक चार कृतियाँ उपलब्ध हैं । सम्भवतः हंस ने दौत्यकर्म के लिए परवर्ती संस्कृत साहित्य के कवियों को काफी प्रभावित किया है। यही कारण है कि 'हंसदूत' या 'हंससन्देश' नामक कृतियों की एक लम्बी शृंखला है। यहाँ ध्यातव्य है कि उक्त चार सन्देशकाव्यों में से तीन प्रकाशित हैं तथा एक अप्रकाशित । रामानुज सम्प्रदाय के आचार्य तथा दार्शनिक के साथ-साथ कवि 'वेदान्तदेशिक' ( वि० सं० १४ वीं शती ) रचित ६० तथा ५१ पद्यों वाले दो आश्वास में विभक्त 'हंससन्देश' का वर्ण्य-विषय हनुमान द्वारा सीता का सन्देश पाकर लंका के राजा रावण के साथ युद्ध करने की तैयारी का समाचार हंस के द्वारा लंका स्थित सीता तक पहुँचाना, है। कृष्ण-भक्ति पर आधारित मन्दाक्रान्ता छन्द में निबद्ध १०२ पद्यों वाले 'हंससन्देश' के प्रणेता का नाम अज्ञात है। किन्तु इसके अन्तिम श्लोक - अन्यं विष्णोः पदमनुपतन् पक्षपातेन हंसः, पूर्ण ज्योतिः पदयुगजुषः पूर्ण सारस्वतस्य । के आधार पर कवि का नाम 'सारस्वत' या 'पूर्ण सारस्वत' कहा जा सकता है। इस सन्देश काव्य में श्रीकृष्ण की विजय यात्रा को देख उन पर मुग्ध हुई स्त्री द्वारा पुष्प वाटिका में एक हंस को देखकर हंस को दूत बनाकर अपना सन्देश कृष्ण तक भेजने की कथा वणित है। किसी अज्ञात कवि द्वारा दार्शनिक आधार पर लिखे गये 'हंससन्देश' नामक सन्देशकाव्य में एक शिवभक्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002117
Book TitleNemidutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikram Kavi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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