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________________ भूमिका 1 २३ भ्रमरदूतम् 'श्री रुद्रन्याय' रचित १२५ पद्यों वाले इस काव्य का वर्ण्य-विषय हनुमान द्वारा सीता का सन्देश पाकर विरह-व्याकुल श्री राम के द्वारा एक भ्रमर के माध्यम से सीता के पास अपना सन्देश पहुँचाना है। यह दूतकाव्य प्रकाशित है। भृङ्गदूतम् 'मेघदूतम्' के आधार पर लिखे गये कवि 'कृष्णदेव' (वि० सं० १८ वीं ) के इस काव्य का वर्ण्य-विषय कृष्ण-विरह-पीडिता एक गोपबाला के द्वारा कृष्ण के पास अपनी विरह-दशा को भ्रमर के माध्यम से पहुंचाना है । इस काव्य का प्रकाशन 'नागपुर विश्वविद्यालय पत्रिका' ( संख्या ३, सन् १९३७ ) में हो चुका है। भृङ्गसन्देश 'वासुदेव' कवि ( १८वीं शताब्दी ) रचित १९२ पद्यों वाले इस काव्य का वर्ण्य-विषय विरही नायक द्वारा अपनी प्रियतमा तक अपना सन्देश भ्रमर के द्वारा पहुँचाना है, जिसका प्रकाशन 'त्रिवेन्द्रं संस्कृत सीरीज' से संवत् १९३७ में हो चुका है। 'भृङ्गसन्देश' नामक दो और काव्य, जो क्रमशः कवि 'गङ्गानन्द' ( १५वीं शती का पूर्वार्द्ध ) तथा 'श्रीमती त्रिवेणी' ( संवत् १८४० से १८८३ ) द्वारा लिखित हैं। इन दोनों काव्यों की सूचना क्रमशः 'आफेक्ट के कैटलागरम्' ( भाग २, संख्या ३० ) तथा 'संस्कृत के सन्देश काव्य' परिशिष्ट २ ( राम कुमार आचार्य) से प्राप्त होता है । मधुकरदूतम् 'राम कुमार आचार्य' लिखित 'संस्कृत के सन्देशकाव्य' { परिशिष्ट २) के अनुसार इस काव्य के रचयिता सेंट्रल कॉलेज, बंगलोर के संस्कृत-विभागाध्यक्ष ( सन् १९२२ से ३४ तक ) राजगोपालजी' हैं । वर्ण्य-विषय का मुझे ज्ञान नहीं है। मधुरोष्ठसन्देश मैसूर के 'संस्कृत हस्तलिखित ग्रन्थों की सूचीपत्र' (ग्रन्थाङ्क २५१ ) में इस काव्य का केवल नामोल्लेख हुआ है। जबकि शेष बातें अज्ञात हैं। मनोवृतम् 'मनोदूत' नाम से सम्प्रति विभिन्न कवियों द्वारा रचित ६ दूतकाव्यों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002117
Book TitleNemidutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikram Kavi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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