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________________ नेमिदूतम् (निविशे:-निर् +/ विश् + विधि लिङ् मध्यपुरुष एकवचन ) ॥ ६६ ॥ शब्दार्थः - सान्द्रोन्निद्रार्जुनसुरभितम्-खिले हुए स्निग्ध अर्जुन पुष्प के सुगन्धि से सुगन्धित, प्रोन्मिषत्केतकीकम्-खिले हुए केतकी पुष्पों से, जातिप्रसवरजसा-जाति पुष्प विशेष की पराग से, स्वादमत्तालिनादैः-आस्वा. दनोन्मत्त भ्रमरों की गुञ्जन ध्वनि के द्वारा, हृद्यम्-मनोहर, नृत्यत्केकामुखरशिखिनम्-नृत्य करते हुए मयूरों की वाचाल ध्वनि से, नानाचेष्टर्जलदललितः-अनेक तरह की चेष्टाओं से युक्त मेघ की क्रीड़ाओं से, भूषितोपान्तभूमिम्-पृथिवीपर्यन्त अलंकृत, तम्-उस; नगेन्द्रम्-केलि-पर्वत का, निविशेः-आनन्द लेना। अर्थः - खिले हुए स्निग्ध अर्जुन-पुष्पविशेष की सुगन्धि से सुगन्धित, खिले हुए केतकी पुष्षों से, जाति पुष्प-विशेष के पराग का आस्वादन कर उन्मत्त भ्रमरों की गुजार से मनोहर, नृत्य करते हुए वाचाल मयूरों से तथा अनेक तरह की चेष्टाओं से युक्त मेघ की क्रीड़ामों से पृथ्वीपर्यन्त अलंकृत उस केलि-पर्वत का ( तुम ) आनन्द लेना । तस्या हर्षादविकृतमहास्ते प्रवेशाय पुर्या, निर्यास्यन्ति प्रवरयदवः सम्मुखाः शौरिमुख्याः। या कालेस्मिनभवनशिखरैः प्रक्षरद्वारि धत्ते, मुक्ताजालग्रथितमलकं कामिनीवाभ्रवन्दम् ॥ ६७ ॥ अन्वयः - ते, प्रवेशाय, तस्याः, पुर्याः, हर्षादविकृतमहाः, शौरिमुख्याः, प्रवरयदवः; सम्मुखाः, निर्यास्यन्ति, या, अस्मिन् काले, भवन शिखरैः, प्रक्षरद्वारि, अभ्रवृन्दम्, कामिनी, मुक्ताजालग्रथितम्, अलकम्, इव, धत्ते । तस्या हर्षादिति । ते प्रवेशाय हे नाथ ! तव प्रवेशार्थम् । तस्याः पुर्याः हर्षाद विकृतमहाः शौरिमुख्याः प्रवरयदबः द्वारिकायाः पुरः प्रमोदात्विकाररहितोत्सवाः केशवप्रमुखाः यदुकुलोत्पन्नश्रेष्ठयदवः । सम्मुखाः निर्यास्यन्ति अभिमुखाः द्वारिकायाः बहिरागमिष्यन्ति इति भावः । या अस्मिन्काले या द्वारिका वर्षासमये । भवनशिखरैः प्रक्षरद्वारि गृहाणैः गृहशृङगैः वा गलद्वारि जलोत्सर्जनं वा। अभ्रवृन्दं कामिनी मुक्ताजालग्रथित मेघनिचयं वनिता मौक्तिकप्रचुरैर्गुम्फितम् [ मुक्तानां जालम् -मुक्ताजालम् (१० तत्० ) ] । अलकमिब धत्ते केशपाश मिव धारयति ॥ ६७ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.002117
Book TitleNemidutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikram Kavi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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