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________________ तीर्थकर (या जिन) : ७७. ईश्वर ) और कालिका ( या काली या वज्रशृंखला ) हैं। अभिनन्दन की स्वतन्त्र मूर्तियाँ केवल देवगढ़, खजुराहो एवं उड़ीसा की नवमुनि और बारभजी गफाओं में उत्कीर्ण हैं। १४3 एलोरा में अभिनन्दन की एक भी मूर्ति नहीं मिली है। (५) सुमतिनाथ पाँचवें तीर्थंकर सुमतिनाथ का जन्म अयोध्या नगरी के इक्ष्वाकुवंशीय राजा मेघरथ के यहाँ हुआ था । इनकी माता मंगला ने १६ शुभ स्वप्न तथा मुख में प्रवेश करता एक हाथी देखा। चैत्र शुक्ल एकादशी के दिन मघा नक्षत्र में माता मंगला ने तीन ज्ञान के धारक व सत्पुरुषों में श्रेष्ठ अहमिन्द्र के जीव को जन्म दिया। इन्द्र ने अन्य देवों के साथ सुमेरु पर्वत पर ले जाकर इनका जन्माभिषेक किया और उनका नाम 'सुमति' रखा । १४४ श्वेताम्बर परम्परा में उल्लेख है कि बालक के गर्भ में रहते हुए इनकी माता ने बड़ी-बड़ी समस्याओं का अनायास ही हल निकाला था, इसी कारण महाराज ने इनका नाम सुमतिनाथ रखा । १४५ सुमतिनाथ की आयु चालीस लाख पूर्व व शरीर तीन सौ धनुष ऊँचा था। कुमारकाल के दस लाख पूर्व बीत जाने पर उन्हें साम्राज्य प्राप्त हुआ । लम्बे समय तक राज्य का उपभोग करने के बाद आत्मा में स्थिरता लाने के उद्देश्य से उन्हें इस संसार व विषयों से विरक्ति हो गयी। उसी समय सारस्वत आदि लौकान्तिक देवों ने उनकी स्तुति की । सुमति ने सहेतुक वन में एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा धारण की। उसी समय उन्हें मनःपर्ययज्ञान उत्पन्न हो गया। बीस वर्ष छद्मस्थ अवस्था में बिताने के बाद प्रियंगु वृक्ष के नीचे योग धारण कर चैत्र शुक्ल एकादशी के दिन इन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। तदनन्तर अठारह क्षेत्रों में विहार व धर्म का उपदेश देने के बाद जब इनकी आयु एक माह शेष रह गई, तब एक हजार मुनियों के साथ सम्मेदशिखर पर प्रतिमायोग धारण कर चैत्र शुक्ल एकादशी के दिन मघा नक्षत्र में इन्होंने निर्वाण प्राप्त किया । १४६ उत्तरपुराण में सुमतिनाथ को गर्भकल्याणक के समय 'सद्योजात', जन्माभिषेक के समय 'वाम', दीक्षाकल्याणक के समय 'अघोर', केवलज्ञान प्राप्त करने पर 'ईशान' तथा निर्वाण प्राप्त करने पर 'तत्पुरुष' कहा गया है जो स्पष्टतः पंचानन शिव के महादेव या महेश स्वरूप से सम्बन्धित हैं । १४७ ज्ञातव्य है कि शिव के महेश मूर्तियों के उदाहरण महाराष्ट्र में एलिफैण्टा और एलोरा (गुफा सं० १६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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