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________________ उपसंहार : २५९ से विचलित हुए बिना सहते रहे वहीं बाहुबली भी साधना में इस सीमा तक तल्लीन हुए कि शरीर से लिपटी माधवी और सर्प, वृश्चिक जैसे जंतु से सर्वथा अप्रभावित और ध्यानमग्न रहे। यहाँ यह भी उल्लेख्य है कि राष्ट्रकूट शिल्पी ने पार्श्वनाथ की उपसर्ग और बाहुबली की साधनारत मूर्तियों के आमने-सामने उत्कीर्णन की परम्परा को मूलतः पूर्ववर्ती चालुक्य कला से प्राप्त किया था जिसके उदाहरण बादामी की गुफा सं० ४ और अयहोल की जैन गुफा में देखे जा सकते हैं। यह बात राष्ट्रकूट कला पर चालुक्य कला के प्रभाव की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। जैन स्थलों पर अन्य शलाकापुरुषों में से केवल भरत चक्रवर्ती, राम, बलराम एवं कृष्ण ही रूपायित हुए हैं। आदिपुराण में भरत चक्रवर्ती के चौदह रत्नों-चक्र, दण्ड, खड्ग, छत्र, चर्म, मणि, काकिणी ( कौड़ी), अश्व, गज, सेनापति, गृहपति, शिल्पी और स्त्री तथा ९ निधियोंनैयसर्प, पाण्डुक, पिंगल, सर्वरत्न, महापद्म, काल, महाकाल, माणव, तथा शंख का उल्लेख भरत के शिल्पांकन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। यद्यपि एलोरा में भरत या किसी अन्य चकवर्ती और बलराम, कृष्ण एवं राम की मूर्ति के कोई उदाहरण नहीं मिलते किन्तु देवगढ़, खजुराहो और देलवाड़ा स्थित विमलवसही व लूणवसही से इनकी मूर्तियाँ मिली हैं । देवगढ़ के मंदिर सं० २ ओर १२ (चहारदिवारो) को १०वीं-११वों शती ई० की मूर्तियों में भरत चक्रवर्ती की कायोत्सर्ग में खड़ी आकृति के समीप आदिपुराण में वर्णित १४ रत्नों में से कुछ मुख्य रत्नों एवं ९ घटों के रूप में ९ निधियों को उत्कीर्ण किया गया है। आदिपुराण में भरत के संसार त्यागने, दीक्षा ग्रहण करने और कठिन साधना द्वारा कैवल्य प्राप्त करने का उल्लेख हुआ है जिसके आधार पर ही देवगढ़ में भरत की कायोत्सर्ग में निर्वस्त्र खड़ी मूर्ति उत्कीर्ण हुई। उत्तरपुराण में राम, बलराम और कृष्ण के उल्लेख का महत्त्व खजुराहो एवं देवगढ़ जैसे स्थलों पर हनुमान सहित राम-सीता (पार्श्वनाथ मंदिर, खजुराहो), बलराम-रेवती व यमलार्जुन (पार्श्वनाथ मंदिर, खजुराहो) एवं नेमिनाथ की मूर्तियों में बलराम ओर कृष्ण के अंकन ( देवगढ़, गथुरा ) में देखा जा सकता है। यह सर्वथा आश्चर्यजनक है कि महापुराण में यक्ष-यक्षी का कोई उल्लेख नहीं हुआ है। केवल महापुराण ही नहीं वरन् दिगम्बर परम्परा के अन्य पुराणों में भी यक्ष-यक्षी का अनुल्लेख ध्यातव्य है। दूसरी ओर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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