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________________ ३८८ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म २४. राजविजय-ये खरतरगच्छ से सम्बन्धित थे। १६७० ई० में बीकानेर में इन्होंने "विज्ञप्तिका" की रचना की।' २५. लावण्यविजय-इन तपागच्छीय विद्वान ने १६५२ ई० में जोधपुर में एक "विज्ञप्तिका" रची। २६. जिनवर्धमान सूरि-खरतरगच्छ से सम्बन्धित इन मुनि ने १६८२ ई० में "सूक्ति मुक्तावली" का सृजन किया। २७. सरचंद्रोपाध्याय-ये सभी खरतरगच्छीय थे। इन्होंने १६२३ ई० में सांगानेर में "स्थूलिभद्रगणमाला काव्य" तथा १६२६ ई० में बीकानेर के निकट अमरसर में "जैन तत्वसार" ग्रन्थ स्वोपज्ञ वृत्ति सहित लिखा। ___२८ लक्ष्मीबल्लभोपाध्याय-ये खरतरगच्छ के थे। १६८९ ई० में इन्होंने रिणी में "पंचकुमार कथा" लिखी।" २९. कनककुशल-ये तपागच्छ से सम्बन्धित थे । इन्होंने १६०८ ई० में मेड़ता में “सौभाग्यपंचमी कथा" लिखी।' ३०. कनककुमार-ये भी खरतरगच्छ के थे। इन्होंने १६५९ ई० में जैसलमेर में "जैसलमेर अष्टजिनालय स्त्रोत्र" रचा। ३१. ज्ञानविमलोपाध्याय-ये खरतरगच्छ के थे। इन्होंने १७वीं शताब्दी में जैसलमेर में "जैसलमेर पार्श्व जिनस्तव" रचा।' ३२. साधुसुन्दर-ये भी खरतरगच्छीय थे। इन्होंने १६२८ ई० में जैसलमेर में "जैसलमेर पार्श्व जिन स्तुति" की रचना की। ___३३. भावप्रमोद-ये भी खरतरगच्छीय थे। इन्होंने १६३७ ई० में बिलाड़ा में "सप्तपदार्थी टीका" लिखी।१० १. राजैसा, पृ०७४-८२॥ २. वही। ३. वही। ४. वही। ५. वही। ६. जैसासइ, पृ० ६०४ । ७. राजैसा, पृ०७४-८२ । ८. वही। ९. वही। १०. वही। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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